बता दें EPI हर देश को उसके द्वारा पर्यावरण के क्षेत्र में किए गए प्रयासों के आधार पर रैंक देता है। यह रैंक तीन मुद्दों पर आधारित होती है, जिसमें पारिस्थितिक तंज्ञ जीवन शक्ति, स्वास्थ्य और जलवायु को लेकर देश द्वारा पॉलिसी शामिल होती है। इन सभी के आधार पर रैंक निर्धारित किए जाके हैं। इस लिस्ट में डेनमार्क ने पहली रैंक हासिल की है, इसके साथ ही डेनमार्क को सबसे स्थिर देश के रूप में पहचान मिली है।
तो वहीं भारत का सबसे खराब प्रदर्शन का कारण पर्यावरण जोखिम का खतरा, पीएम 2.5 और हवा की शुद्धता, वायु प्रदूषण, पानी और सफाई के निर्धारकों, पेयजल की गुणवत्ता, जैव विवधता, जल स्रोतों के स्वास्थयवर्धक प्रबंधन, कूड़े के निष्पादन, ग्रीन एनर्जी में निवेश समेत सभी निर्धारक शामिल हैं।
भारत को लेकर रिपोर्ट मे कहा गया है कि उसकी 180वीं रैंक चौकाने वाली नहीं है। पॉलिसी के स्तर पर सरकार पर्यावरण से जुड़े कानून को मजबूत करने की बजाए, नए कानून बना रही है, जिससे की मौजूदा पॉलिसी कमजोर होती जा रही है। सरकार पर्यावरण को बचाने की बजाए उद्योग को आगे बढ़ा रही है।
पिछले 10 सालों में भारत लगातार EPI की लिस्ट में पिछड़ता नजर आ रहा है। इस समय जब दूसरे देश कोयले के उपयोग से कतरा रहे हैं, तो वहीं भारत इसपर अपनी निर्भरता को बढ़ाता जा रहा है। इसी वजह से कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ा है, जो कि बहुत ही चिंता का विषय है। और यहीं वजब है कि पर्यावरण के क्षेत्र में देश अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल हो रहा है।
EPI की रिपोर्ट में ये दावा किया गया है कि अगर ऐसी हगी स्थिति रही तो 2050 तक अकेले चार देश भारत, चीन, अमेरिका और रूस 50 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों के लिए जिम्मेदार होंगे। बता दें, ग्रीनहाउस गैसों का बड़ी मात्रा में उत्सर्जन में भारत के साथ-साथ चीन, अमेरिका और रूस का बड़ा हाथ है। EPI की लिस्ट में चीन की रैंक 160, अमेरिका 43, और रूस 112 रैंक पर हैं।
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