एक बार फिर नियमावली जारी होने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे , माकपा नेता और केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन, तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन न केवल इस नियमावली का विरोध कर रहे हैं बल्कि इसे मुस्लिम विरोधी बताकर अंतरराष्ट्रीय फलक पर पाकिस्तान के आरोपों को पुष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं। अल जजीरा जैसे भारत विरोधी समाचार एजेंसियां इसे खुल्लम-खुल्ला मुस्लिम विरोधी कानून करार दे रही हैं। कांग्रेस और उसके बगल बच्चा दलों ने अपने शासन वाले राज्यों में सीएए लागू न करने का भी ऐलान किया है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम की नियमावली जारी होने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर उत्पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय हिंदू ,सिख, जैन, बौद्ध,पारसी और ईसाई पंथ के जो लोग भारत में 31 दिसंबर 2014 के पहले शरणार्थी बनकर आ चुके हैं उन्हें नागरिकता प्राप्त हो जाएगी। कांग्रेस और उसके साथी दल इस कानून को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बता कर इसका विरोध कर रहे हैं उनका कहना है की इन तीनों देशों के मुसलमानों को भी शरण मांगने पर नागरिकता का अवसर प्रदान करना चाहिए। जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह संसद और संसद के बाहर बारंबार इस सत्य का ऐलान कर चुके हैं कि तीनों देश घोषित इस्लामी राष्ट्र हैं ऐसे में इन देशों में धर्म के आधार पर मुसलमान का उत्पीड़न संभव कहां है ? फिर मुसलमान को नागरिकता संशोधन कानून में स्थान देने का क्या औचित्य? जो लोग तर्क देते हैं कि पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान में शिया, अहमदिया और बलोच समुदाय के लोगों का उत्पीड़न किया जाता है । यह तर्क देने वाले इस तथ्य को सुविधा के अनुसार भुला देते हैं कि बलोच, अहमदिया और शिया समुदाय के लोग कभी भी भारतीय नागरिकता के लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत संबंधित प्रवर्ग में प्रदत्त योग्यता के आधार पर नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं । भारत सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में अदनान सामी जैसे उत्पीड़ित व्यक्ति को पाकिस्तानी नागरिक होने के बावजूद भारत की नागरिकता प्रदान की है। यह सुविधा योग्यता के आधार पर अन्य पाकिस्तानी मुसलमान के लिए भी उपलब्ध है। क्योंकि किसी मुसलमान का धर्म के आधार पर पाकिस्तान में उत्पीड़न नहीं हो रहा है इसलिए उसे नागरिकता संशोधन कानून का सहारा कैसे मिल सकता है?
जो लोग इस कानून को भेदभावपूर्ण बता रहे हैं वे लोग इस सत्य को जानबूझकर दरकिनार कर रहे हैं कि 1947 में जब इस देश का धर्म के आधार पर विभाजन हुआ और भयंकर पंथीय हिंसा में पाकिस्तान ,बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की हत्याएं हुई तब उस स्थिति में पाकिस्तान छोड़ने की बजाय वहीं रुकने का आह्वान महात्मा गांधी ने यह कहकर किया था कि पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर आने वाले हिंदू, बौद्ध, सिख ,ईसाई ,जैन और पारसी को भारत के नागरिकों की तरह ही हमेशा नागरिकता की सुविधा उपलब्ध रहेगी । उन्हें भयंकर रक्तपात के दौरान प्रवास से बचना चाहिए ।संविधान निर्माता डॉ बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर तो उस समय भी साफ शब्दों में कह रहे थे कि पाकिस्तान में प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को तत्काल भारत बुला लेना चाहिए । डॉ बाबासाहेब अंबेडकर भली भांति जानते थे कि पूर्व और पश्चिमी पाकिस्तान में हिंदू समुदाय के जो लोग वहां बच गए हैं उनमें से अधिकांश पिछड़े और दलित समुदाय के थे । उन पर धार्मिक उत्पीड़न सुनिश्चित था । जब 1950 में जवाहरलाल नेहरू और लियाकत के बीच समझौता हुआ तब भी यह आशंका व्यक्त की गई थी कि भारत में तो अल्पसंख्यकों को सारी सुविधाएं मिलेंगी पर पाकिस्तान में अल्पसंख्यक उत्पीड़न होगा। डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी समेत तमाम राष्ट्रवादियों ने पंडित नेहरू को इस आशंका से अवगत कराया था । तब नेहरू का कहना था कि ऐसे अल्पसंख्यकों के पुनर्वास के लिए प्रधानमंत्री आकस्मिक निधि का उपयोग कर अल्पसंख्यकों का कल्याण सुनिश्चित किया जाएगा । कांग्रेस के अन्य दो पूर्व अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैया और जे बी कृपलानी भी बारंबार पाकिस्तान में बचे अल्पसंख्यकों के पुनर्वास की मांग कर रहे थे। इंदिरा गांधी भी पूर्वोत्तर के राज्यों में भ्रमण कर बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए अल्पसंख्यक समुदाय के शरणार्थियों का दुख दूर करने का संकल्प ले रही थीं । यहां तक कि सन 2003 में जब अटल बिहारी वाजपेई की सरकार थी और डॉक्टर मनमोहन सिंह राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे तब वह भी बांग्लादेश से प्रताड़ित होकर भारत में आए अल्पसंख्यकों को सम्मान के साथ भारत में नागरिकता प्रदान करने की मांग कर रहे थे।
जो मांग बीते 70 वर्षों से प्रलंबित थी ,आज उसे साकार करने का सुनहरा दायित्व नरेंद्र मोदी की सरकार ने निभाया है । तब इसका विरोध करने का एकमात्र कारण है भारत विरोधी शक्तियों के संकेत पर भारत को बदनाम करना और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के आधार पर वोट बैंक खड़ा करना । अरविंद केजरीवाल जैसे झूठों के सरदार आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि नागरिक संशोधन अधिनियम के कारण चीन पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान की जा रही है उससे भारत में चोरी ,डकैती, बलात्कार और आतंकवाद की घटनाओं में वृद्धि होगी। साथ ही साथ उनका दवा है कि इन शरणार्थियों को नागरिकता देने से भारतीय नागरिकों के रोजगार के अवसरों पर भी विपरीत परिणाम पड़ेगा।
सच्चाई यह है कि आज तक जिन शरणार्थी समुदायों को नागरिकता प्रदान करने का निश्चय हुआ है उन पर चोरी, डकैती और बलात्कार के कोई मामले सामने नहीं आए हैं। क्या कोई बौद्ध और जैन किसी आतंकी घटना में संलिप्त पाया गया है ? हर कोई जानता है कि 2008 से 2014 के बीच में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हिंदू आतंकवाद का हौवा खड़ा किया था । अब केजरीवाल एक बार फिर हिंदुओं और शांतिप्रिय जैन और बौद्धों को आतंकवादी करार देने का कुकर्म कर रहा है। इसके पीछे भी सेकुलर मंशा को समझे जाने की आवश्यकता है। रोहिंग्या और बांग्लादेशी तमाम आतंकी घटनाओं में संलिप्त पाए गए हैं। हुजी नामक आतंकवादी संगठन बांग्लादेश से सक्रिय होकर पूरे भारत में डेढ़ दशक तक जिहादी उत्पात में शामिल पाया गया । पर केजरीवाल ने कभी रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ बयान नहीं दिया । यहां तक की शेख शाहजहा जैसे बांग्लादेशी बंगाल में खुलेआम दलित महिलाओं पर बलात्कार और भूखंडों पर कब्जा करते हैं ,तब भी ममता बनर्जी और केजरीवाल जैसे सेकुलर सन्नाटा साधे रहते हैं ।फिर शरणार्थी हिंदुओं को बदनाम करने का करण सहज समझा जा सकता है । सीएए पर तकरार करने वाले घुसपैठियों से प्यार और शरणार्थियों पर वार वोट बैंक की लालच में ही कर रहे हैं ।