दरअसल, कांग्रेस की रणनीति किसान, जवान और पहलवान के नाम पर जाटों के इर्द-गिर्द रही। भाजपा ने इसे भांपते हुए ऐसे इलाकों पर फोकस किया, जहां भाजपा मजबूत है या सवर्ण, पंजाबी, ओबीसी के साथ दलित वर्ग का बाहुल्य है। यही वजह है कि ग्रांट ट्रंक रोड क्षेत्र के पंचकुला, अंबाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, कैथल, करनाल, पानीपत और सोनीपत जिले की 27 विधानसभा सीटों में से 15 पर जीत दर्ज की। इसके अलावा जाटों के साथ यादव बाहुल्य वाले दक्षिणी हरियाणा के रेवाड़ी, गुडग़ांव, फरीदाबाद, महेन्द्रगढ़ जिले की 23 में से 17 सीट पर भाजपा को जीत मिली। कांग्रेस सिर्फ 6 सीट पर सिमट गई। वहीं बगर क्षेत्र में कांग्रेस का प्रदर्शन भाजपा के मुकाबले अच्छा रहा है। इस क्षेत्र में फतेहाबाद, सिरसा, हिसार, भिवानी जिले की 19 सीटें शामिल है। यह इलाके जाट बाहुल्य कहे जाते हैं। यहां कांग्रेस ने 10, भाजपा ने 6 और आईएनएलडी ने 2 सीट पर जीत दर्ज की है। इसके अलावा देशवाल क्षेत्र में रोहतक, झज्जर, चरखी दादरी, जिंद जैसे जिलों की 21 सीटें शामिल है। यहां कड़े मुकाबले के चलते भाजपा ने 10 और कांग्रेस ने 9 सीट पर जीत दर्ज दी। जबकि दो सीट अन्य के खाते में गई है।
हुड्डा के इलाके में दलित वोटों में बिखराव
जिस तरह से लोकसभा चुनाव में दलितों का वोट कांग्रेस को एकतरफा मिला था, वैसा विधानसभा चुनाव में नहीं हुआ। भले ही कांग्रेस ने एससी वर्ग की आरक्षित 17 सीटों में से 9 सीट जीती है, लेकिन कुमारी शैलजा की नाराजगी का असर देखने को मिला है। इसका उदाहरण भूपेन्द्र हुड्डा का गढ़ कहे जाने वाले सोनीपत जिले की खैरखावदा और पानी पानीपत जिले की इसराना सीट है। भाजपा ने यह दोनों सीट कांग्रेस से छीनी है। भाजपा ने एससी वर्ग की 3 सीटों की बढ़ोतरी कर अपना अंक 8 पर पहुंचा दिया। 2019 में जेजेपी को 4 और निर्दलीय ने एक सीट जीती थी। इस बार आरक्षित वर्ग में इनका सफाया हो गया।
बंसीलाल की विरासत भाजपा के साथ
भिवानी जिले की तोशाम सीट पर सबकी नजर थी। वजह यहां चौधरी बंसीलाल की विरासत के उत्तराधिकारी को लेकर चुनाव हो रहा था। दरअसल, किरण चौधरी के कांग्रेस छोडऩे के बाद उनकी पुत्री श्रुति चौधरी भाजपा के टिकट पर चुनाव में उतरी। उनके मुकाबले में कांग्रेस ने बंशीलाल के पोते अनिरूद्ध चौधरी को टिकट दिया। चुनाव में जनता ने श्रुति को चुनाव जिता कर भाजपा का साथ दे दिया।