नई दिल्ली। आज की तारीख इतिहास के पन्नों में एक ऐसे शख्स के नाम दर्ज है, जिनके बारे में जानकर या सुनकर लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं। 5 जनवरी 1928 को रैटोडेरो तालुका (Ratodero Taluka),पाकिस्तान में एक ऐसे बच्चे ने जन्म लिया, जो जवानी से लेकर मरने समय तक चर्चा में रहे। इतना ही नहीं मरने के 39 साल बाद भी वो अपने कार्यों की वजह से सुर्खियों में छाया रहा है। हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और ताकतवर नेताओं में शुमार जुल्फिकार अली भुट्टो की, जिसे 4 अप्रैल 1979 को रावलपिंडी में फांसी दी गई थी। जुल्फिकार अली भुट्टो की 39वीं बरसी पर आज हम आपको उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में शायद नहीं जानते होंगे।
टॉयलेट न जाना पड़े, इसलिए छोड़ दिए थे खाना टॉयलेट ने जाना पड़े, इसलिए जुल्फिकार अली भुट्टो ने खाना तक छोड़ दिया था। यह बात सुनकर भले ही आपको यकीन न हो रहा हो, लेकिन सच है। दरअसल, ये उन दिनों की बात है जब जुल्फिकार अली भुट्टो जेल में थे। सलमान तासीर नामक लेखक ने अपनी किताब ‘भुट्टो’ में इस बात का जिक्र किया है। उन्होंने एक जगह लिखा कि जब जुल्फिकार शुरुआती दिनों में टॉयलेट करने जाते थे, उस दौरान एक गार्ड उनकी निगरानी करने में लगा रहता था। शुरुआत में भुट्टो यह देखते रहे, लेकिन उन्हें यह बात काफी बुरी लग गई। इसके बाद उन्होंने तकरीबन खाना ही छोड़ दिया ताकि उन्हें टॉयलेट न जाना पड़े। भुट्टो की इस जिद के बाद यह निगरानी खत्म कर दी गई और उनकी कोठरी के बाहर ही एक अलग से टॉयलेट बना दिया गया।
ऐसे चली गई थी पीएम की कुर्सी जुल्फिकार अली भुट्टो 14 अगस्त 1973 को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बने। लेकिन, 5 जुलाई 1977 को पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल मोहम्मद जिया-उल-हक ने उनका तख्तापलट कर दिया। ठीक दो महीने बाद 3 सितंबर 1977 को सेना ने भुट्टो को गिरफ्तार कर लिया। भुट्टो पर मार्च 1974 में विपक्षी नेता की हत्या का आरोप लगा था। भुट्टो का मुकदमा स्थानीय कोर्ट के जगह सीधे हाई कोर्ट में चला। कुछ राजनीतिककार यह भी मानते हैं कि भुट्टो को अदालत में अपना पक्ष तक नहीं रखने दिया गया। 18 मार्च 1978 के लाहौर हाईकोर्ट ने जुल्फिकार अली भुट्टो को नवाब मोहम्मद अहमद खान की हत्या के जुर्म में फांसी पर लटकाए जाने का आदेश दे दिया।
सप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दी थी अपील 4 अप्रैल 1979 से ठीक एक दिन पहले यानि 3 अप्रैल की शाम 6 बजकर पांच मिनट पर जेल अधिकारियों, मैजिस्ट्रेट और डॉक्टर ने भुट्टो को बताया कि सुप्रीम कोर्ट में उनकी फांसी की सजा के खिलाफ अपील रद्द हो गई है। ठीक एक दिन बाद उन्हें फांसी दे दी गई।
प्राइवेट पार्ट की खींची गई फोटो फेमक किताब ‘भुट्टो के आखिरी 323 दिन’ किताब में इस बात का जिक्र किया गया है कि फांसी मिलने के बाद जुल्फिकार अली भुट्टो के प्राइवेट पार्ट की फोटो खींची गई थी। दरअसल, प्रशासन इस बात को चेक करना चाहता था कि भुट्टो का इस्लामी रीति-रिवाज से मुसलमानी हैं या नहीं। लेकिन, उनका मुसलमानी पूरे रीति-रिवाज के साथ ही हुआ था। सबसे हैरानी की बात यह है कि इतनी दर्दनाक मौत मिलने के करीब 39 साल बाद पाकिस्तान के सिंध हाईकोर्ट ने जुल्फिकार अली भुट्टो को शहीद का दर्जा दिया है।
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