जस्टिस मिलिंद जाधव ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय जैसी कानून प्रवर्तन एजेंसियों को एक कड़ा संदेश भेजा जाना चाहिए कि उन्हें कानून के दायरे में रहकर काम करना चाहिए। वे बिना विवेक का प्रयोग किए कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते तथा नागरिकों को परेशान नहीं कर सकते। मेरे समक्ष वर्तमान मामला धनशोधन कानून की पालना की आड़ में उत्पीड़न का एक उत्कृष्ट मामला है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई को समाप्त करने का आदेश दिया।
क्या है मामला?
ईडी ने राकेश जैन के खिलाफ उपनगरीय विले पार्ले पुलिस स्टेशन में एक संपत्ति खरीदार द्वारा समझौते के उल्लंघन और धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए दर्ज कराई गई पुलिस शिकायत के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की थी। न्यायमूर्ति जाधव ने अपने फैसले में कहा कि जैन के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है और इसलिए मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप भी टिकते नहीं हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि जैन के खिलाफ आपराधिक व्यवस्था को गति देने में शिकायतकर्ता और ईडी की कार्रवाई “स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण है और इसके लिए अनुकरणीय लागत लगाने की आवश्यकता है”। न्यायमूर्ति जाधव ने कहा, “मैं अनुकरणीय लागत लगाने के लिए बाध्य हूं क्योंकि ईडी जैसी कानून प्रवर्तन एजेंसियों को एक कड़ा संदेश भेजने की आवश्यकता है कि उन्हें कानून के मापदंडों के भीतर काम करना चाहिए और वे बिना सोचे-समझे कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते और नागरिकों को परेशान नहीं कर सकते।”
एक सप्ताह में जुर्माना राशि जमा करवाने का आदेश
कोर्ट ने ईडी को चार सप्ताह के भीतर हाई कोर्ट लाइब्रेरी को एक लाख रुपये की लागत का भुगतान करने का निर्देश दिया। पीठ ने मामले में मूल शिकायतकर्ता (खरीदार) पर भी एक लाख रुपये की लागत लगाई। यह लागत शहर स्थित कीर्तिकर लॉ लाइब्रेरी को दी जाएगी।