दंडित करने का हथियार न बने
कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण देने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विवाह की विफलता के कारण आश्रित पति या पत्नी को गरीबी या स्वच्छंदता का सामना नहीं करना पड़े। इसके लिए भरण-पोषण न्यायसंगत और सावधानीपूर्वक संतुलित होना चाहिए। यह प्रावधान पति या पत्नी को दंडित करने के हथियार के रूप में परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
संवैधानिक अधिकार है
जस्टिस बराड़ ने कहा अदालतों को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत प्रावधान के पीछे के विधायी इरादे को उसकी वास्तविक भावना के अनुरूप रखते हुए भरण-पोषण की कार्यवाही संचालित करने की आवश्यकता है, जो महिलाओं, बच्चों और कमजोर माता-पिता को त्वरित सहायता और सामाजिक न्याय प्रदान करना है। यह उपाय संविधान के अनुच्छेद 39 तथा अनुच्छेद 15(3) के संवैधानिक दायरे में भी आते हैं। जीवन यापन करने के अलावा इसका एक उद्देश्य यह भी है कि वैवाहिक विवादों से उपजी मुकदमेबाजी के लिए उसके पास पर्याप्त धन हो और उसे समृद्ध विरोधी पक्ष के कारण कष्ट नहीं उठाना पड़े।