सभी दलीलें सुनने के बाद 7 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रखा केंद्र सरकार ने नवंबर 2016 में 500 रुपए और 1,000 रुपए के नोटों को बंद कर दिया गया था। न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने याचिकाकर्ताओं, केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक की विस्तृत दलीलें सुनने के बाद 7 दिसंबर 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस नज़ीर 4 जनवरी 2023 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं।
संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से दिया फैसला न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की संविधान पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने यह फैसला सुनाया। फैसला सर्वसम्मति से हुआ है। पीठ में जस्टिस गवई और नागरत्न के अलावा जस्टिस नजीर, ए एस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यन थे।
नोटबंदी से पहले केंद्र-आरबीआई में हुआ था सलाह-मशविरा सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि, नोटबंदी से पहले केंद्र और आरबीआई के बीच सलाह-मशविरा हुआ था। इस तरह के उपाय को लाने के लिए एक उचित सांठगांठ थी और हम मानते हैं कि नोटबंदी आनुपातिकता के सिद्धांत से प्रभावित नहीं हुई थी। आरबीआई के पास नोटबंदी लाने का कोई अधिकार नहीं है और केंद्र तथा आरबीआई के बीच परामर्श के बाद यह निर्णय लिया गया।
प्रक्रिया से संबंधित रिकॉर्ड मांगा बेंच में जस्टिस ए एस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यम भी शामिल हैं, जिन्होंने सरकार और RBI को 8 नवंबर 2016 की अधिसूचना के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया से संबंधित रिकॉर्ड पेश करने के लिए कहा था।
नोटबंदी की निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था, याचिकाकर्ताओं का तर्क याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलीलों में तर्क दिया था कि आरबीआई अधिनियम 1934 की धारा 26 (2) में नोटबंदी की निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था।
नोटबंदी के विरोध में थी 58 याचिका नोटबंदी को गलत और त्रुटिपूर्ण बताते हुए कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने तर्क दिया था कि, सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को अपने दम पर शुरू नहीं कर सकती है। यह सिर्फ आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर किया जा सकता है।