scriptSC on PMLA: ‘बेल का नियम और जेल अपवाद’, मनी लांड्रिग मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला | Supreme Court on Bail rule and jail exception SC important decision in jharkhand Cm hemant soren money laundering cases | Patrika News
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SC on PMLA: ‘बेल का नियम और जेल अपवाद’, मनी लांड्रिग मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला

Supreme Court of India: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को धन शोधन मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Jharkhand CM Hemant Soren) के कथित सहयोगी प्रेम प्रकाश को बेल देते हुए कहा कि कानून का सामान्य सिद्धांत ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद’ धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के मामलों पर भी लागू होता है।

नई दिल्लीAug 30, 2024 / 12:06 pm

Akash Sharma

supreme court of India

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Supreme Court on PMLA: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को धन शोधन मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Jharkhand CM Hemant Soren) के कथित सहयोगी प्रेम प्रकाश को बेल देते हुए कहा कि कानून का सामान्य सिद्धांत ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद’ धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के मामलों पर भी लागू होता है। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि व्यक्ति की स्वतंत्रता हमेशा नियम है और कानूनी प्रक्रिया के जरिए इससे वंचित करना अपवाद है। जस्टिस विश्वनाथन ने फैसला सुनाते हुए कहा, पीएमएलए की धारा 45 सिर्फ यह निर्धारित करती है कि जमानत शर्तों पर दी जाएगी। इससे मूल सिद्धांत नहीं बदलता कि जमानत नियम है। संविधान के अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को कानून की स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जा सकता है। पीठ ने याचिकाकर्ता की लंबी कैद और मुकदमे में देरी पर विचार करते हुए झारखंड हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें जमानत देने से इनकार किया गया था।

मजिस्ट्रेट ट्रायलेबल केस में भी बेल नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने एक दूसरे मामले में जालसाजी और धोखाधड़ी के आरोपी को जमानत देते हुए कहा, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोगों को मजिस्ट्रेट ट्रायलेबल केस में भी जमानत नहीं मिल रही है। उन्हें जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ता है। जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि इस मामले में 22 नवंबर, 2023 के बाद कोई प्रगति नहीं हुई। मामला मजिस्ट्रेट के समक्ष सुनवाई योग्य है। हमारे विचार से हाईकोर्ट को जमानत दे देनी चाहिए थी। याचिकाकर्ता एक साल से ज्यादा समय से हिरासत में है।

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