1984-89: आर. वेंकटरमण और प्रणब मुखर्जी
इंदिरा गांधी 1980 में जब तीसरी बार प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने पहले आर. वेंकटरमण और फिर प्रणब मुखर्जी को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी थी। जब प्रणब मुखर्जी वित्त मंत्री बने थे, तब वह गुजरात से राज्यसभा सदस्य थे। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब 1984 में लोकसभा चुनाव हुए वेंकटरमण देश के उपराष्ट्रपति बनने के कारण चुनावी प्रक्रिया से दूर हो गए, तो प्रणब मुखर्जी को पार्टी ने चुनाव ही नहीं लड़ाया।
1989 : शंकर राव चव्हाण
दो बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके शंकरराव चव्हाण को जून 1988 में राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने 1989 के आम चुनाव में मैदान में उतरने से इनकार कर दिया।कांग्रेस ने उनके बेटे अशोक चव्हाण को मौका दिया तो वह भी 24 हजार मतों से चुनाव हार गए। बाद में शंकर राव राज्यसभा सदस्य बने।
1990 : मधु दंडवते
प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार में वित्त मंत्री रहे मधु दंडवते महाराष्ट्र की राजापुर सीट से पांच बार के सांसद थे। लेकिन वित्त मंत्री बनने के बाद उन्होंने चुनाव लड़ा तो तीसरे नंबर पर रहे।
1996 : मनमोहन सिंह
कांग्रेस की 1991 में सत्ता में वापसी हुई तो प्रधानमंत्री बने पी.वी. नरसिम्हा ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री के रूप में कैबिनेट में शामिल किया। उन्हें राज्यसभा के जरिए सदन में भेजा गया। 1996, 2004 और 2009 में मनमोहन सिंह के लोकसभा चुनाव लडऩे की चर्चा तो हुई, पर वह राज्यसभा में ही बने रहे। सिंह ने 1999 में दक्षिण दिल्ली सीट से चुनाव लड़ा लेकिन जनता ने उन्हें ठुकरा दिया और वे भाजपा प्रत्याशी से 30000 वोट से चुनाव हारे।
1999-2004 : जसवंत सिंह और यशवंत सिन्हा
1999 से लेकर 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की कैबिनेट में शुरुआती तीन साल जसवंत सिंह और फिर यशवंत सिन्हा ने वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली थी। 2004 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो जसवंत सिंह चुनाव नहीं लड़े। यशवंत सिन्हा हजारीबाग सीट से चुनाव मैदान में उतरे, पर सीपीआइ के भुवनेश्वर प्रताप मेहता से करीब 1 लाख मतों से हार गए।
2004-2014 : पी. चिदंबरम, प्रणव मुखर्जी
यूपीए की पहली सरकार में पी. चिदंबरम वित्त मंत्री बनाए गए थे लेकिन 2008 में मुंबई हमले के बाद उन्हें शिवराज पाटिल की जगह गृह मंत्रालय सौंपा गया। वित्त मंत्रालय प्रणब मुखर्जी को देने की चर्चा हुई, पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्रालय खुद के पास ही रखा। 2009 के चुनाव में मनमोहन सिंह लोकसभा चुनाव नहीं लड़े और राज्यसभा में ही बने रहे। यूपीए के दूसरे दूसरे कार्यकाल में पहले प्रणब मुखर्जी और फिर पी. चिदंबरम वित्त मंत्री बने। 2014 के लोकसभा चुनाव में पी. चिदंबरम ने चुनाव लडऩे से इनकार कर दिया था। उनकी जगह कांग्रेस ने शिवगंगा से उनके बेटे कार्ति चिदंबरम को प्रत्याशी बनाया लेकिन वह भी चुनाव हार गए।
2014-24 : अरुण जेटली, पीयूष गोयल, निर्मला सीतारमण
2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी, तो अमृतसर से लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद अरुण जेटली मंत्री बनाए गए। उनके अस्वस्थ होने पर पीयूष गोयल ने जनवरी-फरवरी 2019 के लिए मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली थी। जब 2019 के लोकसभा चुनाव हुए तो दोनों ही मंत्री चुनाव नहीं लड़े। मोदी के दूसरे कार्यकाल में पांच साल से निर्मला सीतारमण वित्त मंत्री हैं लेकिन उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है।
क्या है कारण
चुनाव नहीं लड़ने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं लेकिन माना जाता है कि इसके पीछे एंटी-इंकमबैंसी प्रमुख फैक्टर होता है। आम तौर पर हर चुनाव में महंगाई बड़ा मुद्दा होती है और उसके लिए वित्त मंत्री को जिम्मेदार माना जाता है।