प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सऊद आज यानी रविवार को हैदराबाद हाउस में विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर से मुलाकात करेंगे। इसके बाद वह 20 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात करेंगे। प्रिंस फैसल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी मुलाकात कर सकते हैं। इस दौरान भारत और सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की उम्मीद है। इसके साथ ही अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रमों पर भी विस्तार से बातचीत होगी।
विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, सऊदी अरब और ईरान जैसे देश अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत से बात करना चाहते हैं। ऐसे में ईरान के विदेश मंत्री भी जल्द ही भारत का दौरा कर सकते हैं। वर्ष 1996 में रहे तालिबानी शासन के विपरित के इस बार सऊदी अरब ने तालिबान की ओर से अफगानिस्तान पर किए गए कब्जे के बाद तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है और न ही सऊदी अरब का दूतावास काबुल में इन दिनों सक्रिय है।
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हालांकि, पिछले दिनों प्रिंस फैसल का तालिबान सरकार को लेकर बयान आया था। दरअसल, अफगानिस्तान में तालिबान के नियंत्रण और उसमें कतर की महत्वपूर्ण भूमिका से सऊदी अरब और यूएई दोनों परेशान है। खास तौर पर सऊदी अरब का मानना है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद इस क्षेत्र में सुरक्षा से जुड़े गंभीर मसले पैदा हो सकते हैं। वहीं, इजराइल को ईरान से खतरा दिखाई पड़ रहा है।
सऊदी अरब और यूएई अफगानिस्तान में कतर, पाकिस्तान और तुर्की की सक्रिय भूमिका से चिंता में हैं। पाकिस्तान ने अपनी कमर्शियल फ्लाइटों का संचालन काबुल के लिए शुरू भी कर दिया है। काबुल एयरपोर्ट के तकनीकी ऑपरेशन की जिम्मेदारी कतर संभाल रहा है, जबकि तालिबान सरकार ने सुरक्षा का जिम्मा तुर्की को देने की तैयारी की हुई है।
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कतर के विदेश मंत्री अब्दुल रहमान अल थानी और विशेष दूत माजेद अल कुहतानी गत रविवार को काबुल में थे। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अभी तक तालिबान को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है। वहीं, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई तालिबान को सैनिक और राजनीतिक मदद मुहैया करा रही है। दूसरी ओर, अफगानिस्तान के मौजूदा हालात को देखते हुए खाड़ी के दोनों देश यानी सऊदी अरब और यूएई चिंतित हैं और भारत के लगातार संपर्क में बने हुए हैं।