भारत सरकार के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय द्वारा जारी इन दिशानिर्देशों में बताया गया है कि अधिकांश विकसित देशों में संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए रोगियों का परीक्षण करने के लिए प्रोटोकॉल हैं। अनुशंसा में आईसीयू में गहन चिकित्सा विशेषज्ञ की उपलब्ध होने के महत्व पर भी जोर दिया गया है। हालांकि, ये दिशानिर्देश बाध्यकारी नहीं हैं।
आईसीयू में कब किए जाएं मरीजों को भर्ती
दिशानिर्देशों में ऐसे करीब सात मानदंड तय किए गए हैं जिसके अनुसार मरीज को आईसीयू में भर्ती किया जा सकता है। इसमें कहा गया है कि सिर्फ किसी अंग के फेल हो जाने, किसी अंग से जुड़ी बाहरी मदद की स्थिति, गहन निगरानी की आवश्यकता वाली गंभीर बीमारी के मामले, रोगी को श्वसन सहायता की आवश्यकता होने, सर्जरी के बाद के मामलों में हालत बिगड़ने से रोकेने, चेतना का स्तर परिवर्तित हो जाने आदि स्थितियों में ही मरीज को भर्ती किया जाए।
कब आईसीयू से मिले डिस्चार्ज
मरीज की वसीयत में या मरीज के रिश्तेदारों की मर्जी के खिलाफ रोगी को आईसीयू में भर्ती नहीं किए जाने का निर्देश है। जब मरीज को ऐसी बीमारी हो जिसमें ठीक होने की संभावना सीमित हो या फिर जब उपचार से लाभ होने की संभावना नहीं हो तो भी मरीज को आइसीयू में भर्ती नहीं किया जाए।
मरीज को कई बार अपनों की देखभाल की होती है दरकार
इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन एक्सपर्ट्स कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर नरेंद्र रूंगटा ने पत्रिका को बताया कि आईसीयू में मरीज की भर्ती का मानदंड ये होना चाहिए हम मरीज के शेष बचे दिनों में जीवन का संचार कर सकें न कि उसके जीवन में मात्र कुछ दिन जोड़ सकें। रूंगटा ने बताया कि कई बार मरीज को डॉक्टर के हाथों इलाज के बजाए अपनों के बीच देखभाल की जरूरत होती है। ऐसे हालात में मरीज को आईसीयू में भर्ती करना मरीज के साथ अत्याचार है। साथ ही इससे मरीज की जेब पर अनावश्यक रूप से खर्च भी आता है। गौरतलब है कि भारत सरकार के मौजूदा निर्देश भी डॉ. रूंगटा के नेतृत्व में गठित समिति के आधार पर ही जारी किए गए हैं।
चीनी, नमक और वसा युक्त खाद्य पदार्थों पर टैक्स
दूसरी तरफ, नीति आयोग द्वारा कराए गए एक अध्ययन में सिफारिश की गई है कि मीठे पेय जैसे कोला और जूस के साथ-साथ उच्च मात्रा में चीनी, नमक और वसा से युक्त खाद्य पदार्थों पर 20 से 30 फीसदी सार्वजनिक स्वास्थ्य कर लगाया जा सकता है। यह कर जीएसटी के अतिरिक्त होगा। यह अध्ययन हाल में जर्नल ऑफ हेल्थ पॉलिसी एंड प्लानिंग में भी प्रकाशित हुआ है। यूनिसेफ ने भी इस अध्ययन के लिए फंड दिया है। शोधकर्ताओं का लक्ष्य है कि इससे चीनी और संबंधित उत्पादों की खपत को कम करने में सफलता मिलेगी। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि ये टैक्स घरों में खरीदी जाने वाली चीनी पर नहीं बल्कि चीनी निर्मित खाद्य पदार्थ जैसे कन्फेक्शनरी और मिठाई निर्माताओं पर लगाया जा सकता है। इससे चीनी की मांग कम हो सकती है। गौरतलब है कि सेहतमंद जीवन शैली के लिए डब्ल्यूएचओ भी इसी तरह की अनुशंसाएं पिछले दिनों कर चुका है।