शारीरिक संबंध स्वेच्छा से बनाए गए- हाईकोर्ट
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि महिला काफी समय से IPS अधिकारी के साथ रिश्ते में थी और स्वेच्छा से उसके साथ रही तथा शारीरिक संबंध बनाए। अदालत ने कहा था, “यदि संबंध पक्षों के नियंत्रण से परे कारणों से ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, तो यह IPC की धारा 376 के तहत दंडनीय अपराध के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला दर्ज करने का आधार नहीं हो सकता है। इसलिए, याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करना पूरी तरह से अनुचित है।”
‘मामले के तथ्यों से परे कानून के विपरीत है HC का आदेश’
अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि 19 सितंबर, 2024 को पारित हाई कोर्ट का आदेश “विकृत, किसी भी कानूनी योग्यता से रहित, मामले के तथ्यों से परे और स्थापित कानून के विपरीत है।’ महिला अधिकारी की शिकायत पर 29 दिसंबर 2014 को बिहार के कैमूर में महिला पुलिस स्टेशन में IPS अधिकारी पुष्कर आनंद और उनके माता-पिता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। IPS अधिकारी पुष्कर आनंद पर बलात्कार और आपराधिक धमकी जैसे गंभीर अपराधों के अलावा अन्य आरोप भी लगाए गए, जबकि उसके माता-पिता पर अपराध को बढ़ावा देने का मामला दर्ज किया गया।
सोशल मीडिया से शुरु हुई दोस्ती
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि भभुआ में पुलिस उपाधीक्षक के पद पर नियुक्त होने के दो दिन बाद ही IPS आनंद ने सोशल मीडिया के माध्यम से उसके प्रति दोस्ताना व्यवहार दिखाना शुरू कर दिया। IPS अधिकारी ने कथित तौर पर उससे शादी करने की इच्छा जताई, महिला ने भी हामी भर दी और दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए। हालांकि, महिला ने बताया कि उनकी कुंडली मेल नहीं खाने के कारण शादी नहीं हो सकी। ये भी पढ़ें: पूर्व PFI अध्यक्ष अबूबकर को एक और झटका, सुप्रीम कोर्ट ने UAPA मामले में जमानत देने से किया इंकार याचिका में कही ये बात
वकील ने याचिका में कहा, “सम्मानपूर्वक यह प्रस्तुत किया जाता है कि उच्च न्यायालय यह समझने में विफल रहा कि अपराध के समय प्रतिवादी संख्या 2 पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात था और याचिकाकर्ता उसके अधीनस्थ अधिकारी के रूप में तैनात था और इस प्रकार प्रतिवादी संख्या 2 अपने अधीनस्थ अधिकारी यानी याचिकाकर्ता को प्रभावित करने के लिए शक्ति और अधिकार में था और एक अधिकारी होने के नाते, उसने अपराध किया और उससे शादी करने का आश्वासन भी दिया, जिसे बाद में उसने अस्पष्ट कारणों का हवाला देकर अस्वीकार कर दिया।”
पटना हाईकोर्ट यह समझने में भी विफल रहा कि प्राथमिकी और आरोपपत्र के मात्र अवलोकन से यह स्थापित हो जाएगा कि संबंधित अपराध किया गया है और प्राथमिकी में दिए गए कथन प्रथम दृष्टया अपराध किए जाने का खुलासा करते हैं।