स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस उर्फ गदाधर चट्टोपाध्याय ने परम समाधि 16 अगस्त 1886 को ली। परमहंस काली मां के सच्चे भक्त थे और कहा जाता है कि उन्हें काली मां के साक्षात दर्शन होते थे। स्वामी विवेकानंद भी इन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे।
मां काली के होते थे साक्षात दर्शन प्रत्येक वर्ष 12 मार्च को राम कृष्ण परमहंस की जयंती मनाई जाती है। कहा जाता है कि वो आध्यात्मिक रास्ते पर इतने आगे बढ़ गए थे कि उनको मां काली के साक्षात दर्शन होते थे। आध्यात्मिक रास्ते पर परम तत्व अर्थात ज्ञान की प्राप्ति करने वाले महापुरुष को परमहंस की उपाधि दी जाती है। राम कृष्ण परमहंस की गिनती ऐसे ही महात्माओं में होती थी। उनका मानना था कि ईश्वर के साकार रूप का दर्शन किया जा सकता है।
ऐसे हुई थी स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस की मुलाकात स्वामी विवेकानंद की रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात के काफी किस्से हैं। दोनो की पहली बार मुलाकात कलकत्ता के दक्षिणेश्वर काली माता मंदिर में हुई थी। उस समय विवेकानंद का नाम नरेंद्रनाथ था। पहली मुलाकात में ही नरेंद्रनाथ ने स्वामी रामकृष्ण से एक सवाल पूछा था और जवाब सुनकर उन्होंने रामकृष्ण परमहंस को अपना आध्यात्मिक गुरु बना लिया।
ईश्वर को मैं तुम्हारे मुकाबले ज्यादा गहराई से महसूस करता हूं दरअसल, उस समय चर्चा थी कि स्वामी रामकृष्ण को ईश्वर के साक्षात दर्शन होते थे, ऐसे में जिज्ञासु नरेंद्र नाथ ने उनसे पूछा कि आपने कभी ईश्वर को देखा है? इस पर रामकृष्ण ने जवाब दिया कि ‘मैं जितनी स्पष्टता से तुमको देख पा रहा हूं, उतनी ही स्पष्टता से भगवान को भी देख पा रहा हूं। अंतर सिर्फ इतना है कि ईश्वर को मैं तुम्हारे मुकाबले ज्यादा गहराई से महसूस करता हूं।’
25 साल की उम्र में ही छोड़ा घर स्वामी रामकृष्ण के इस जवाब से नरेंद्र नाथ दत्त इतना प्रभावित हुआ कि उसने 25 साल की उम्र में ही घर छोड़कर संन्यासी बनने का निर्णय लिया। रामकृष्ण परमहंस ईश्वर के दर्शन के लिए आध्यात्मिक चेतना की तरक्की पर जोर देते थे। उनके आचरण और उपदेशों ने एक बड़े आबादी वर्ग के मन को छूआ। उनके विचारों को मानने वालों की संख्या वर्तमान समय में भी बहुत ज्यादा है। उनका मानना था कि व्यक्ति का मन ही उसको गुलाम, ज्ञानी, अज्ञानी और बुद्धिमान बनाता है। मन को नियंत्रित करके जीवन के रास्ते को आसान बनाया जा सकता है।
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