1980 के दौर में सैयद अब्दुल करीम बढ़ईगिरी का पुश्तैनी काम करता था। वह बहुत ही कटटर धार्मिक प्रवृत्ति का था। भारत में आतंक को हवा देने में लगी पकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की निगाह पड़ी और फिर उसे उकसाकर पाकिस्तान भेजा। यहां उसे आईईडी बनाने का और उसे चलाने का विशेष प्रशिक्षण दिया गया। उसे इतना प्रशिक्षित किया गया कि वह बम बनाने का सबसे बड़ा प्रशिक्षक बन गया।
मुंबई में हुए 1993 बम ब्लास्ट में बम बनाने का काम किसी अब्दुल करीम ने किया था। इस साजिश में वह अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम, जमात-उद-दावा प्रमुख हाफिज मोहम्मद सईद और शीर्ष लश्कर कमांडर जकी-उर-रहमान लखवी के साथ बहुत करीब से काम कर रहा था। बम में टाइमर के लगाकर आईईडी से अटैच करने का काम किसी ने किया था।
आतंकी अब्दुल करीम कितना खतरनाक है इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि जब पाकिस्तान को मुंबई हमले के बाद डोजियर सौंपा गया था तो वह 15वें नंबर पर था। टुंडा पर 40 से अधिक मामलो में ब्लास्ट के लिए बम तैयार करने और उसे भीड़भाड़ वाली जगह पर रखकर जानलेने का आरोप है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हैदराबाद और सूरत में हुए बम ब्लास्ट में इसका नाम शामिल है।
आतंकी अब्दुल करीम टुंडा ने लश्कर-ए-तैयबा का नेटवर्क जम्मू-कश्मीर से बाहर भी फैलाया। उसने केरल, उत्तर प्रदेश और पंजाब सहित कई राज्यों में युवाओं को सीधे भर्ती किए। इतना ही नहीं कई राज्यों में स्लीपर सेल के रूप में काम कराया। आतंकी संगठन सिमी को इसने ही आतंकी संगठन इंडियन मुज्जाहददीन के रूप में बदला और लंबे समये तक इसके मार्गदर्शन में ही आतंकी गतिविधियां संचालित की गई।
1993 मुंबई बम विस्फोट में भले ही यह शामिल रहा हो लेकिन 1994 से पहले इसे कोई भांप नहीं पाया था। 1994 में पहली बार यूपी गजियाबाद में छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में बम विस्फोट में इसका नाम सामने आया। पुलिस इस तक पहुंचती यह फरार हो गया। इसमें 19 लोग मारे गए थे। 1997 में इसने फिर दिल्ली की ब्लू लाइन बस में विस्फोट कराया। इसमें 4 लोग मारे गए थे। इसके बाद यह पूरी तरह सीन से गायब हो गया।
आतंकी कितना शातिर है इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि इसने 2000 में बांग्लोदश बम विस्फोट में इसने अपने मारे जाने की खबर फैला दी। पांच साल तक खुुफिया एजेंसियां भी यही समझती रहीं। एक दिन 2005 में लश्कर ए तैयबा का आतंकी अब्दुल रज्जाक दिल्ली में पकड़ा जाता है और फिर खुलासा होता है कि टुंडा जिंदा है। इसके बाद फिर खुफिया एजेंसियां सतर्क हो जाती हैं। 16 अगस्त 2013 को रॉ की सूचना पर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल नेपाल सीमा से टुंडा को उत्तराखंड के बनबसा इलाके से गिरफ्तार करती है।
पाकिस्तान में भारत के खिलाफ काम कर रहे हर आतंकी सरगाना से इसका सीधा संबंध है। फिर चाहे लश्कर-ए-तैयबा का चीफ हाफिज सईद हो या फिर इंडियन मुजाहिदीन का सरगना मौलाना मसूद अजहर। डॉन दाऊद इब्राहिम या आतंकी जकी-उर-रहमान सभी इसका गहरा संबंध था। आईएसआई ने इसे तैयार ही किया था तो हर साख में इसकी नाक थी।
आतंकी टुंडा ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की शह पर आतंक फैलाने के लिए लड़के ही तैयार नहीं किए बल्कि भारत की डेमोग्राफी बदलने के लिए रोहिंग्या घुसपैठ में मदद की। इसके साथ ही बांग्लादेश के तस्करों को मिलाकर नकली मुद्रा आपूर्ति कराई। जिससे भारत की आर्थिक रूप से कमर टूट जाए। एक डर का माहौल पैदा हो इसके लिए मानव तस्करों का भी एक बड़ा गिरोह खड़ा किया।
पिलखुआ का अब्दुल करीम आईईडी बम बनाने में सबसे खतरनाक और तेज है। इसी तेजी में बम बनाते समय उसका हाथ उड़ गया। इसके बाद आतंक के नेटवर्क में उसका नाम टुंडा पड़ गया। इसके बावजूद भी वह इतना बड़ा बम विशेषज्ञ बन गया था कि वह एक हाथ से भी बहुत तेजी से बम बांध देता था।