70 के दशक में शुरू हुआ पंजाब का अलगाववादी आंदोलन
अकाली दल को स्वायत राज्य बनाने की मांग
पंजाब में 70 के दशक से अलवागवादी आंदोलन (khalistan movement) की शुरुआत हुई। अकाली दल ने पंजाब को स्वायत राज्य बनाने की मांग की थी। 1973 में इसी मांग को लेकर आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पारित किया था। प्रस्ताव में अकाली दल ने मांग की कि केंद्र सरकार केवल रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा पर अधिकार को छोड़ कर अन्य सब विषयों पर पंजाब को उसके अधिकार दे दें।
पंजाब केसरी के संपादक की हत्या
अकाली दल के अलगवादी आंदोलन की मांग जोर पकड़ती गई। इससे पंजाब में हिंसक घटनाएं बढ़ने लगी। सितंबर 1981 में हिंद समाचार-पंजाब केसरी अखबार समूह के संपादक लाला जगत नारायण (Lala Jagat Narayan Murder case) की गोली मारकर हत्या कर दी गई। उस समय पंजाब केसरी पंजाब का सबसे प्रमुख अखबार था। पंजाब केसरी के संपादक की हत्या के बाद कई जिलों में हिंसक घटनाएं हुईं और कई लोगों की जान गई।
स्वर्ण मंदिर में पुलिस अधिकारी अटवाल की हत्या
इसके बाद 1983 में पंजाब में एक बार फिर एक बड़ी घटना घटी। अप्रैल 1983 में पंजाब पुलिस के उपमहानिरीक्षक एएस अटवाल (AS Athwal MUrder Case) की दिन दहाड़े स्वर्ण मंदिर परिसर में गोली मारकर तब हत्या कर दी गई। उस समय एएस अटवाल स्वर्ण मंदिर में माथा टेक कर बाहर निकल रहे थे। उनकी हत्या के बाद फिर पंजाब की कानून व्यवस्था पर सवाल उठने लगे।
पुलिस की मौजूदगी में भी दो घंटे तक पड़ा रहा अटवाल का शव
एएस अटवाल की हत्या के बाद उनका शव स्वर्ण मंदिर परिसर में करीब दो घंटे तक पड़ा रहा। जबकि उस दौरान वहां करीब 100 पुलिसकर्मी तैनात थे। लेकिन उनमें खालिस्तानियों का डर इतना था कि कोई अटवाल के शव के पास नहीं गया। अटवाल के मौत मामले की जांच में पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल (KPS Gill) ने इस बात की पुष्टि की।
पंजाब में लगा राष्ट्रपति शासन
जांच रिपोर्ट आने के बाद पंजाब के माहौल को बिगड़ता हुआ देखकर इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) सरकार ने दरबारा सिंह की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया और राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद पंजाब की कानून व्यवस्था राज्य सरकार से हाथ से निकल गई। इसके बाद खालिस्तानियों का प्रशासन के साथ सीधा आमना-सामना होना शुरू हुआ।
पंजाब के ऑपरेशन ब्लू स्टार की पूरी कहानी
खालिस्तानियों का नेता जरनैल सिंह भिंडरावाला
पंजाब के अलगाववादी आंदोलन का नेता खालिस्तानी समर्थक जरनैल सिंह भिंडरावाला (Jarnail Singh Bhindranwale) था। वह पंजाब को खालिस्तान नाम से एक अलग देश की मांग कर रहा था। अमृतसर भिंडरावाला का गढ़ था। कहा जाता है कि भिंडरावाला को जनता का भी समर्थन प्राप्त था। उसकी मांग के पीछे धार्मिक आधार था। भिंडरावाला का कहना था कि जैसे पाकिस्तान को धर्म के आधार पर अलग देश बनाया गया, वैसे ही पंजाब को खालिस्तान बनाया जाए।
गोल्डन टेंपल में शरण लेकर सरकार को दी चुनौती
1984 के शुरुआती तीन महीने में पंजाब में हिंसक घटनाओं में मरने वालों की संख्या 298 हो गई थी। भिंडरावाले पर इन हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप लगे। सरकार की सख्ती बढ़ने पर जरनैल सिंह भिंडरावाले की अगुआई में अलगाववादियों ने गोल्डन टेंपल में शरण लेकर तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार को चुनौती दी। जिसके बाद सरकार ने गोल्डन टेंपल से अलगाववादियों को बाहर निकालने के लिए 1984 में 1 जून से 6 जून तक सैन्य कार्रवाई की, जिसे ऑपरेशन ब्लू स्टार का नाम दिया गया।
ट्रेन-बस रोक शुरू हुआ था सैन्य अभियान
ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू करने से पहले सरकार ने पंजाब से आने-जाने वाली रेलगाड़ियों और बस सेवाओं पर रोक लगा दी। फोन कनेक्शन काट दिए गए। विदेशी मीडिया को राज्य से बाहर कर दिया गया। इसके बाद 3 जून को भारतीय सेना ने अमृतसर में प्रवेश कर स्वर्ण मंदिर परिसर को चारों ओर से घेर लिया। 4 जून को सेना ने गोलीबारी शुरू की, जिसका खालिस्तानियों ने माकूल जवाब दिया। पांच जून को बख्तरबंद गाड़ियों और टैंकों का इस्तेमाल कर सेना अंदर घुसी।
ब्लू स्टार ऑपरेशन में 83 सैनिक हुए शहीद
इस सैन्य अभियान के दौरान अमृतसर स्थित सिखों के पवित्र तीर्थ स्थल स्वर्ण मंदिर में भीषण खून-खराबा हुआ। अकाल तख्त पूरी तरह तबाह हो गया। स्वर्ण मंदिर पर गोलियां दागी गईं और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पुस्तकालय बुरी तरह जल गया।
6 जून को जनरैल सिंह भिंडरावाले सहित अन्य खालिस्तानियों की मौत के बाद ब्लू स्टार पूरा हुआ। तब सरकार ने बताया कि इस अभियान में 83 सैनिक शहीद और 249 घायल हुए। साथ ही इस दौरान 493 लोगों की भी मौत हुई। वहीं 86 घायल हुए।
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ऑपरेशन ब्लू स्टार के कारण गई इंदिरा गांधी की जान
स्वर्ण मंदिर पर हुए भारतीय सेना के हमले और ऑपरेशन ब्लू स्टार से सिखों में काफी नाराजगी थी, इसके कारण आगे चलकर इंदिरा गांधी (Indira Gandhi Murder Case) को उन्हीं के सुरक्षा में लगे सिख सैनिक द्वारा 31 अक्टूबर 1984 में उनकी हत्या कर दी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भारत में कई जगहों पर हिंदू और सिखों में दंगे हुए। इस दंगों की आग पंजाब से निकल कर पूरे देश में फैली।
सिख विरोधी दंगे में 30 हजार सिखों की मौत
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में भड़की सिख विरोधी (Sikh Riots) दंगे में लगभग 30,000 से ज्यादा सिखों की मौत हो गई। यह कोई छोटी मोटी घटना नहीं थी बल्कि यह उन घटनाओं में से है, जिसकी स्थिति बड़ी भयावह थी। कई राज्यों में सिखों से जमकर लूटपाट हुई। इस मामले में जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार सहित कांग्रेस के कई नेताओं पर आरोप लगे।
ऑपरेशन ब्लू स्टार में पाकिस्तान की भूमिका
कहा जाता है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार में पाकिस्तान की भूमिका भी थी। जरनैल सिंह भिंडरावाला को पाकिस्तान का भी समर्थन प्राप्त था। पाकिस्तान उनको यह कह रहा था कि आप अलग देश की मांग करिए। जिससे प्रभावित होकर जरनैल सिंह भिंडरावाला ने खालिस्तान की मांग कर रहा था। दरअसल पाकिस्तान 1971 में भारत से मिले हार को पचा नहीं पा रहा था। इसलिए उसने भारत से पंजाब को अलग कर देने की साजिश रची।
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