केंद्र सरकार ने दिल्ली की नौकरशाही से सम्बन्धित शक्तियां दिल्ली सरकार को दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद गत 19 मई को दिल्ली सरकार अध्यादेश जारी किया था। इसे कानूनी जामा पहनाने के लिए संसद में विधेयक लाया जाना प्रस्तावित है। सरकार यह बिल कभी भी लोकसभा में पेश कर सकती है। हालांकि विधेयक सोमवार को पेश किए जाने की अटकलें लगाई जा रही थी, लेकिन कार्यसूची में इसे शामिल नहीं किया गया।
आम आदमी पार्टी इस विधेयक के खिलाफ पिछले ढाई महीनों से सक्रिय है। कांग्रेस समेत लगभग सभी विपक्षी दल विधेयक के खिलाफ अपना मत प्रकट कर चुके हैं। विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल सभी दल इस मामले को लेकर एकजुट नजर आ रहे हैं, लेकिन आंध्र की वाईएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल व बसपा जैसे दलों ने इस मामले में अपना रुख साफ नहीं किया है। हालांकि सरकार को लोकसभा में विधेयक पारित करवाने में मुश्किल नहीं होगी, लेकिन सभी गैर एनडीए दल विधेयक के खिलाफ हो जाते हैं तो सरकार को राज्यसभा में विधेयक पारित करवाना मुश्किल होगा। वैसे वाईएसआर कांग्रेस व बीजद जैसे दलों के रुख के देखते हुए सरकार राज्यसभा में भी विधेयक पारित होने को लेकर कोई दिक्कत नहीं मान रही।
आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा ने संविधान और लोकतंत्र को सर्वोच्च सम्मान देने वाले सभी सांसदों से इस अध्यादेश के खिलाफ एकजुट होने और संसद के दोनों सदनों में इसके खिलाफ मतदान करने की अपील की। उन्होंने संसद परिसर में मीडिया से बातचीत में कहा कि प्रस्तावित विधेयक अलोकतांत्रिक व अवैध विधायी कार्य का प्रतीक है। यह विधेयक दिल्ली के लोगों पर सीधा हमला, न्यायपालिका का अपमान और देश की संघीय व्यवस्था के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने राज्यसभा में अपनी सांसदों को व्हीप जारी कर अगले पांच दिन तक सदन में आवश्यक रूप से उपस्थित रहने को कहा है। बीआरएस के राज्यसभा में सचेतक जे. संतोष कुमार ने सांसदों को दिल्ली की सेवाओं को लेकर लाए गए अध्यादेश का कानून में बदलने के लिए प्रस्तावित विधेयक के विरोध में मतदान करने को कहा है।