दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने 31 अगस्त 2020 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए निष्कर्ष निकाला कि जब सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को एक साथ पढ़ा जाता है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि विशेष अदालतों का गठन विधायकों के खिलाफ मामलों से निपटने के लिए किया गया था, चाहे वे मौजूदा हों या पूर्व। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की मंशा साफ है कि विधायकों के खिलाफ लंबित मामले की सुनवाई तेजी से की जाए।
उच्च न्यायालय ने यह निर्देश भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता मनजिंदर सिंह सिरसा द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। सिरसा ने क्षेत्राधिकार की कमी के कारण उनके खिलाफ शिकायत के स्थानांतरण या वापसी के उनके आवेदन को खारिज करने वाले मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी।
अपमानजनक टिप्पणी से जुड़ा है मामला
यह पूरा मामला अपमानजनक टिप्पणी को लेकर मनजीत सिंह जीके द्वारा सिरसा के खिलाफ दायर मानहानि मुकदमे से जुड़ा है। राउज एवेन्यू कोर्ट के अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने मुकदमे पर सिरसा को समन जारी किया था। सिरसा ने समन को सत्र अदालत में चुनौती दी थी। वहां से भी उसे खारिज कर दिया गया था।
उसके बाद उन्होंने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और कहा था कि जिस समय उन पर अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया था, उस समय वे विधायक नहीं थे। इस दशा में उनके खिलाफ सांसद व विधायकों के मामले की सुनवाई के लिए बने विशेष अदालत में उनके खिलाफ सुनवाई नहीं हो सकती है। इस तरह से मजिस्ट्रेट की अदालत ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर उन्हें समन जारी किया है। ऐसे में समन को निरस्त कर दिया जाए।