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नई दिल्ली

राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक स्कूल में सफाईकर्मी के रूप में काम करने को मजबूर, जानिए क्या है पूरा मामला

केरल में शिक्षकों को पार्ट-टाईम या फुल-टाईम सफाई कर्मचारी के रूप में काम करना पड़ रहा है। इनमें से कुछ शिक्षक ऐसे भी हैं जिन्हें राज्य और केंद्र की तरफ से सम्मानित किया जा चुका है, मगर अब उन्हें सफाई कर्मचारी के रूप में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

नई दिल्लीJun 06, 2022 / 07:40 pm

Archana Keshri

राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक स्कूल में सफाईकर्मी के रूप में काम करने को मजबूर, जानिए क्या है पूरा मामला

राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक स्कूल में सफाईकर्मी के रूप में काम करने को मजबूर, जानिए क्या है पूरा मामला

केरल में कोविड -19 महामारी के कारण दो साल तक बंद रहने के बाद 1 जून को स्कूल फिर से खुल गए। स्कूलों के फिर से खुलने से जहां बच्चों में खुशी की लहर दौड़ गई, तो वहीं ये अवसर शिक्षकों के एक समूह के लिए अपमान के अलावा कुछ नहीं लेकर आया। राज्य में कम से कम 50 शिक्षकों को पार्ट-टाईम या फुल-टाईम सफाई कर्मचारी के रूप में काम करना पड़ रहा है। दरअसल, ये शिक्षक आदिवासी क्षेत्रों में मल्टी ग्रेड लर्निंग सेंटर्स (MGLC) में पढ़ाते थे और 31 मार्च को सरकार द्वारा इन केंद्रों को बंद करने के बाद अपनी नौकरी गंवाने वाले 344 शिक्षकों में शामिल थे।
सरकार द्वारा इन केंद्रों को बंद करने के बाद उनकी नौकरी चली गई। उनमें से कम से कम 50 ने शिक्षकों को अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए सफाईकर्मी के रूप में कार्य करने के लिए मजबूर होना पड़ गया है। इन शिक्षकों में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता शिक्षक केआर उषा कुमारी भी शामिल हैं जो स्कूलों में सफाईकर्मी के रूप में काम करने के लिए मजबूर है।
केरल में एक MGLC में आदिवासी छात्रों को शिक्षा प्रदान करने वाली एक शिक्षिका के रूप में उनकी महत्वपूर्ण सेवा के लिए उषा कुमारी के पास एक दर्जन से अधिक राज्य और राष्ट्रीय पुरस्कार हैं। मगर उनकी इस सच्ची सेवा से प्राप्त पुरस्कार भी उनको सही पद पर न ले जा सके। आज उन्हें सफाईकर्मी के रूप में काम करना पड़ रहा है।

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उषा कुमारी ने अपनी कहानी बयां करते हुए बताया, “शायद, यह मेरी किस्मत है। दो महीने पहले, जब मैं अंबूरी पहाड़ी पर स्थित कुन्नाथुमाला में MGLC में आदिवासी छात्रों को पढ़ा रही थी, मैं चाक और डस्टर पकड़े हुए थी। मगर ज्वाइनिंग लेटर जमा करने के बाद मैंने सबसे पहले ऑफिस रूम में सफाई का सामान ढूंढा था।” भले ही उषा कुमारी को उनकी गरिमा से वंचित कर दिया गया हो, लेकिन 54 साल की उषा कुमारी को सफाईकर्मी की नौकरी करने में कोई आपत्ति नहीं है।

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उषा कुमारी का कहना है, “मेरा परिवार और बच्चे मुझसे स्वीपर की भूमिका नहीं निभाने का आग्रह कर रहे हैं। लेकिन मुझे कोई ऐतराज नहीं है क्योंकि मैं अपने पैरों पर खड़ा रहना चाहती हूं। मेरी राज्य सरकार से बस यही गुजारिश है कि हमें पूरी पेंशन दी जाए और हमारा पदनाम बदलकर वरिष्ठ सहायक कर दिया जाए। एक MGLC एकल शिक्षक के रूप में 23 साल की सेवा करने के बावजूद, वे छह साल के लिए स्वीपर ग्रेड के रूप में केवल मेरी वर्तमान भूमिका पर विचार करें।” आपको बता दें, उषा कुमारी की सरकारी सेवा में सिर्फ छह साल बचे हैं।

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