कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी पर भी पड़ रहा बुरा असर
रिपोर्ट में कहा गया, ऑफिस में किसी भी टास्क को पूरा करने के लिए ज्यादा और बार-बार बातचीत की जरूरत पर जोर दिया जा रहा है, जो कर्मचारियों के तनाव और स्ट्रेस लेवल को बढ़ा रहा है। कंपनियों में बातचीत की बढ़ती जरूरत वर्कर्स के लिए सिरदर्द साबित हो रही है। इस सर्वे में कहा गया है कि इस थकान के चलते नौकरी छोड़ने की दर बढ़ी है। कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी पर भी बुरा असर पड़ा है। कर्मचारियों की बात नहीं सुनी जाने की स्थिति भी इस थकान की बड़ी वजह है। ऐसे में मोटिवेशन से लेकर चाइल्डकेयर-हेल्थकेयर सर्विसेज, फ्लेक्सिबल वर्क आवर्स के साथ कर्मचारियों की बातें सुनना और उनके इश्यूज को सॉल्व करना जरूरी है।
इन उपायों के जरिए कम हो सकती है थकान
रिपोर्ट के मुताबिक, अगर किसी कर्मचारी को लगता है कि वह अपने कार्यस्थल पर अधिक सक्रिय है और कंपनी या संस्था भी उसकी मदद के लिए तत्पर है तो उसे कम थकावट महसूस हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया कि नियोक्ताओं को अपने कर्मचारियों के प्रति गहरी समझ हासिल करनी चाहिए, जिस तरह वे अपने ग्राहकों को समझते हैं ताकि उन्हें भी खुश, प्रेरित और अपने साथ बनाए रखा जा सके।
कंपनियों में जेनरेटिव AI का लिया जा रहा है सहारा
रिपोर्ट के मुताबिक, 72 फीसदी कंपनियां अपने कर्मियों के वर्क-लाइफ बैलेंस को सुविधाजनक बनाने के लिए गौर कर रही हैं। कंपनियों के एचआर अधिकारी इस स्थिति को संभालने के लिए एआई का इस्तेमाल कर रहे हैं। करीब 45 फीसदी भारतीय कंपनियां अपने एचआर प्रॉसेस में जेनरेटिव एआई का इस्तेमाल कर रही हैं और इससे 93 फीसदी कंपनियों में कार्य क्षमता और उत्पादकता बेहतर हुई है।