लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा की 300 पार की मुहिम को अंजाम तक पहुंचाने में पश्चिम बंगाल की भी अहम भूमिका रही थी। राजनीतिक पूर्वानुमानों को धता बताते हुए भाजपा ने 42 में से 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी। उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में दावे के बावजूद आंकड़ा सौ से नीचे रहने पर लोगों ने भाजपा को चुका हुआ मान लिया था। लोकसभा चुनाव 2024 के समर में उतरी भाजपा इस बार पश्चिम बंगाल के गढ़ को अपनी झोली में डालने की पुरजोर कोशिश कर रही है। उधर, तृणमूल कांग्रेस के सामने भी किला बचाने की चुनौती है। दो बड़े दलों की टक्कर के बीच वाम दल और कांग्रेस अप्रत्याशित रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में दोनों ही दलों को यहां निराशा हाथ लगी थी।
आरक्षित सीटों पर फिर भगवा!
प्रदेश की 11 सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित हैं। 2019 में भाजपा ने इनमें से आठ सीटों पर जीत दर्ज कर दलित और आदिवासी मतदाताओं के बीच अपनी पैठ को पुख्ता किया था। इस आंकड़े के कमोबेश दोहराव के संकेत मिल रहे हैं।
कांटे के मुकाबले में फंसी हैं कई सीटें
प्रदेश की जिन सीटों पर इस बार कांटे का मुकाबला देखने को मिल सकता है, वे हैं दमदम, बारासात, बशीरहाट, जादवपुर, कोलकाता उत्तर, कोलकाता दक्षिण, मुर्शिदाबाद, बहरमपुर, मालदा दक्षिण और आसनसोल। इनमें कुछ सीटों पर कांग्रेस और वामदल भी काबिज हो जाएं तो ज्यादा आश्चर्य की बात नहीं।
बशीरहाट और बहरमपुर हॉट सीट
बहरमपुर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी की परंपरागत सीट रही है। यहां से लगातार जीतते आ रहे अधीर के सामने तृणमूल ने पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान को उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। उधर, भाजपा ने बशीरहाट पर संदेशखाली की पीडि़ता रेखा पात्रा को उतारकर तृणमूल के लिए कड़ी चुनौती पेश की है। जानकार मानते हैं कि भाजपा पात्रा के बहाने तृणमूल को पूरे बंगाल में और विपक्ष को देशभर में बैकफुट पर लाने की कोशिश करेगी।
राजबंशी और नमोशूद्र भी निर्णायक
मतुआ समुदाय की तरह ही राजबंशी और नमोशूद्र समुदाय भी बांग्लादेश से भारत आया है। मतुआ के मुकाबले उनकी जनसंख्या भले कम हो, पर समस्याएं कमोबेश एक जैसी ही हैं। बीते चुनाव में राजबंशी और नमोशूद्र समुदाय ने भाजपा को भरपूर समर्थन दिया था।
सीएए: असर पड़ना तय
बांग्लादेश से विस्थापित मतुआ समुदाय लंबे अरसे से नागरिकता की मांग कर रहा है। 2019 के चुनाव में भी मतुआ समुदाय ने इसी उम्मीद में भाजपा को समर्थन दिया था। इस बार बंगाल का किला फतह करने के लिए भाजपा ने चुनावों से ऐन पहले नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का नोटिफिकेशन जारी कर इसे अमलीजामा पहना दिया। माना जा रहा है कि मतुआ बहुल करीब आठ-दस सीटों पर असर पड़ना तय है।