सार्वजनिक मंच पर झूठी कहानी बनाना
उन्होंने आगे लिखा, “आपको याद होगा कि पिछले एक सप्ताह में दो मौकों पर, मैंने आपसे दी गई परिस्थितियों में स्वास्थ्य सेवा से संबंधित सार्वजनिक महत्व के मुद्दों पर चर्चा के लिए आने का अनुरोध किया था। हालांकि, आपने निमंत्रण को नजरअंदाज किया और इसकी बजाय न आने के लिए तुच्छ बहाने बना लिए। इस तरह के संचार का एकमात्र उद्देश्य प्रशासन में खामियों के लिए अपनी जिम्मेदारी से बचना और सार्वजनिक मंच पर झूठी कहानी बनाना है।”
एलजी ने पत्र में आरोप लगाया, “मुद्दे को सीधे तौर पर उठाने की बजाय आपने लगातार भ्रामक संदेश भेजने और मीडिया में आरोप-प्रत्यारोप करने का विकल्प चुना है। एक हालिया उदाहरण है जहां आपको और आपके स्वास्थ्य सचिव को उच्च न्यायालय में एक मामले में व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा गया था। अदालत स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की दयनीय स्थिति से इतनी व्यथित थी कि खंडपीठ ने आपको खुली अदालत में कारावास की धमकी दी। यह आपके लिए अपने विभाग में सुचारू कामकाज के लिए सुधारात्मक उपाय करने का पर्याप्त कारण होना चाहिए था।”
उन्होंने कहा, “मुझे आश्चर्य है कि दिल्ली सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय राजधानी के अस्पताल में कॉटन जैसी बुनियादी सामग्रियां भी नहीं हैं। आपने एक केंद्र में आर्थोपेडिक डॉक्टर की अनुपलब्धता पर भी प्रकाश डाला है।” उपराज्यपाल ने दावा किया कि स्थिति इतनी खराब है कि उच्च न्यायालय को हाल ही में कदम उठाना पड़ा और स्वास्थ्य सुविधाओं का उचित मूल्यांकन करने और सुधारात्मक कदम उठाने के लिए एक रोडमैप प्राप्त करने के लिए डॉक्टरों की एक समिति गठित करनी पड़ी।
उपराज्यपाल के पत्र में आगे कहा गया है, “यह दुःखद स्थिति पिछले 10 साल के दौरान स्वास्थ्य प्रशासन के पतन की ओर इशारा करती है, जो आपके लिए चिंता और आत्मनिरीक्षण का कारण होना चाहिए। मुझे आपको याद दिलाना होगा कि स्वास्थ्य एक ऐसा विषय है जो दिल्ली सरकार को पूरी तरह स्थानांतरित कर दिया गया है। प्रभारी मंत्री के रूप में, आपको मंत्रिपरिषद में आपको सौंपे गए विभागों पर निर्णय लेने से नहीं कतराना चाहिए।
उपराज्यपाल के पत्र पर सरकार का पलटवार
वहीं उपराज्यपाल के पत्र पर पलटवार करते हुए दिल्ली सरकार ने साजिश का आरोप लगाया है। दिल्ली सरकार कहना है कि साजिश के तहत अस्पतालों में दवाओं समेत अन्य जरूरी सामग्री की कमी बनाई जा रही है। जानबूझ कर दिल्ली सरकार की को बदनाम किया जा रहा है। एलजी के पास जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई करने का अधिकार है फिर वो कार्रवाई क्यों नहीं करते?