पीएम ने साधा कांग्रेस पर निशाना, बताया चुनावी हथकंडा
प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर हमला बोला है। उन्होंने एक्स पर लिखा, नए तथ्यों से पता चलता है कि कांग्रेस ने किस तरह बेरहमी से कच्चातिवु को छोड़ दिया था। उधर, कांग्रेस ने तमिलनाडु में चुनावी फायदे के लिए इसे केंद्र का हथकंडा बताया है। अन्नामलाई की ओर दायर आरटीआइ के जवाब में सामने आया कि 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके ने एक समझौता किया था। इसके तहत कच्चातिवु द्वीप को औपचारिक रूप से श्रीलंका को सौंप दिया गया था। तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने इसका पुरजोर विरोध किया था।
समझौते में रखी गई शर्तें
द्वीप सौंपने से पहले 26 जून को कोलंबो और 28 जून को दिल्ली में दोनों देशों के बीच दो दौर की बातचीत हुई थी, जिसमें कुछ शर्तें रखी गई थीं।
1. भारतीय मछुआरे जाल सुखाने के लिए द्वीप का इस्तेमाल करेंगे।
2. द्वीप पर बने चर्च पर जाने के लिए भारतीयों को वीजा की जरूरत नहीं होगी।
3. भारतीय मछुआरों को द्वीप पर मछली पकडऩे की इजाजत नहीं होगी। इसका काफी विरोध हुआ था।
नेहरू ने बताया था महत्वहीन मुद्दा
आरटीआइ से मिली जानकारी के मुताबिक 10 मई 1961 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ‘कच्चातिवु द्वीप’ के मुद्दे को महत्वहीन बताते हुए खारिज कर दिया था। नेहरू ने कहा था, मैं इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देता और इस पर अपना दावा छोडऩे में मुझे कोई झिझक नहीं होगी। मुझे इसका अनिश्चितकाल तक लंबित रहना और संसद में दोबारा उठाया जाना पसंद नहीं है।
बेरहमी से द्वीप छोड़ दिया
‘आंखें खोलने और चौंकाने वाला सच सामने आया है। कांग्रेस ने किस तरह बेरहमी से कच्चातिवु को छोड़ दिया। इसने हर भारतीय को नाराज कर दिया है। भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना कांग्रेस का 75 सालों से काम करने का तरीका रहा है। -नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
समझौते के तहत दिया गया
प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु को ध्यान में रखकर कच्चातिवु का मुद्दा उठाया, जबकि केंद्र सरकार की विदेश नीति की विफलता के कारण नेपाल, भूटान और मालदीव जैसे मित्र पड़ोसियों से रिश्ते बिगड़ रहे हैं। कच्चातिवु समझौते के तहत दिया गया था।
-मल्लिकार्जुन खरगे
पत्रिका एक्सप्लेन : कहां है कच्चातिवु
285 एकड़ का यह निर्जन टापू भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में स्थित है। रामेश्वरम के उत्तर-पूर्व में स्थित टापू भारतीय तट से 33 किमी, जबकि श्रीलंका के जाफना से 62 किमी दूर है। यहां 20वीं सदी का कैथोलिक सेंट एंथोनी चर्च है, जिसके सालाना समारोह में भारतीय और श्रीलंकाई मछुआरे हिस्सा लेते हैं।
क्या है द्वीप का इतिहास
कच्चातिवू द्वीप का निर्माण 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण हुआ था। यह कभी 17वीं शताब्दी में मदरै के राजा रामानद के अधीन था। ब्रिटिश शासनकाल में यह द्वीप मद्रास प्रेसीडेंसी के पास आया। 1921 में श्रीलंका और भारत दोनों ने मछली पकडऩे के लिए भूमि पर दावा किया और विवाद अनसुलझा रहा। आजादी के बाद इसे भारत का हिस्सा माना गया। 1974 में इसे समुद्री सीमा समझौते के तहत भारत ने श्रीलंका को सौंप दिया।
कब-कब हुआ फैसले का विरोध
वर्ष 1991 में तमिलनाडु के तत्कालीन सीएम करुणानिधि ने विधानसभा में प्रस्ताव पास कर द्वीप को वापस लाने की मांग की थी। वर्ष 2008 में तत्कालीन सीएम जयललिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर द्वीप को लेकर हुए समझौते को अमान्य करार देने की मांग थी। 2022 में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पीएम मोदी से इसे वापस लेने का आग्रह किया था।