बता दें कि केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटा दिया था। वहीं केंद्र शासित प्रदेश बनने से पहले जम्मू कश्मीर विधानसभा में सिर्फ अनुसूचित जातियों के लिए 7 सीटें आरक्षित थीं।
बताया गया कि ये सभी सीटें जम्मू संभाग में थीं। वहीं कश्मीरी हिंदुओं, गुलाम कश्मीर से आए नागरिकों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई सीट आरक्षित नहीं थी। लेकिन अब कश्मीरी हिंदुओं और गुलाम कश्मीर के नागरिक कुछ सीटों को उनके लिए आरक्षित करने की मांग कर रहे हैं। कश्मीरी हिंदू लोकसभा में भी उनके लिए सीट आरक्षित करने की मांग कर रहे हैं।
जानकारी के मुताबिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट का प्रारूप तैयार कर लिया है। इस रिपोर्ट के तहत कश्मीरी हिंदुओं के लिए सिक्किम में बौद्ध लामाओं के लिए आरक्षित सीट की तरह ही एक फ्लोटिंग विधानसभा क्षेत्र तैयार किया जा सकता है। बता दें कि फ्लोटिंग विधानसभा क्षेत्र वह होता है, जिसकी कोई भौगोलिक सीमा नहीं होती। बता दें कि कश्मीर हिंदू 1989 के बाद कश्मीर में आतंकी हिंसा के चलते पलायन कर देश के विभिन्न हिस्सों में बस गए थे, इसलिए वह वहां से भी उस क्षेत्र के लिए वोटिंग कर सकते हैं।
वहीं पांडु़चेरी विधानसभा का माडल अपनाते हुए कश्मीरी हिंदुओं के लिए आरक्षण सुनिश्चित किया जा सकता है। उनके लिए 1 या 2 सीटों को आरक्षित किया जा सकता है। इसके साथ ही बताया गया कि अनुसूचित जातियों के लिए 7 सीटें ही आरक्षित रहेंगी, जबकि अनुसूचित जनजातियों के लिए 9 सीटें आरक्षित हो सकती हैं। जबकि गुलाम कश्मीर से आए नागरिक चाहते हैं कि गुलाम कश्मीर के कोटे की 24 में से कुछ सीटों को अनारक्षित कर उन पर उनके समुदाय के प्रतिनिधियों को चुना जाए। हालांकि परिसीमन आयोग ने स्पष्ट कर रखा है कि गुलाम कश्मीर के लिए आरक्षित सीटें उसके कार्याधिकार क्षेत्र से बाहर हैं। इनके लिए भी एक से दो सीट आरक्षित हो सकती है।
गौरतलब है कि केंद्र शासित जम्मू कश्मीर में विधानसभा का प्रविधान है। घाटी विधानसभा के गठन से पूर्व प्रदेश में विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाना है। इसको लेकर केंद्र सरकार ने मार्च 2020 में जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग का गठन किया था। बता दें कि आयोग को मार्च 2022 तक अपनी अंतिम रिपोर्ट देनी हे। इस रिपोर्ट के बाद ही जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए जाने हैं।