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करोल बाग सीट: AAP की सबसे मजबूत सीट पर BJP ने खेला बड़ा दांव, जानिए क्या है सियासी समीकरण

Karol Bagh Vidhan Sabha Seat: दिल्ली विधानसभा 2025 के चुनाव में करोल बाग सीट पर दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है, जहां आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच कड़ी टक्कर होने की संभावना है।

नई दिल्लीJan 20, 2025 / 02:09 pm

Shaitan Prajapat

Delhi Election 2025: दिल्ली विधानसभा 2025 के चुनाव में करोल बाग सीट पर दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है, जहां आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच कड़ी टक्कर होने की संभावना है। पिछले कुछ वर्षों से आम आदमी पार्टी का दबदबा बना हुआ है, जिसने इस सीट पर तीन बार जीत हासिल की है। वहीं, बीजेपी ने भी हार की हैट्रिक के बाद इस सीट पर अपने राष्ट्रीय महामंत्री दुष्यंत गौतम को उतारा है, जो पार्टी की ओर से बड़ा दांव माना जा रहा है।

बीजेपी और आप के बीच होगा कड़ा मुकाबला

करोल बाग विधानसभा सीट पर अब तक हुए सात चुनावों में, बीजेपी और आप दोनों ने तीन-तीन बार जीत हासिल की है, जबकि कांग्रेस को केवल एक बार जीत मिली। कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी ने इस सीट पर तीन बार जीत हासिल की है। इस चुनाव में उम्मीद जताई जा रही है कि आप के विशेष रवि और बीजेपी के दुष्यंत गौतम के बीच कड़ा मुकाबला होगा, जो इस प्रतिष्ठित सीट पर जीत की दिशा तय कर सकता है।

दुष्यंत गौतम का राजनीतिक सफर

बीजेपी में कई महत्वपूर्ण पर काम करते हुए दुष्यंत कुमार ने संगठनात्मक राजनीति में अपनी पहचान बनाई है। उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र राजनीति से हुआ था। शुरुआती दिनों में वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े थे। इसके बाद आपातकाल के समय राजनीति में कदम रखते हुए दलित समुदाय से जुड़े मुद्दों को प्रभावी तरीके से उठाया। उनके काम को देखकर पार्टी ने उन्हें बीजेपी के अनुसूचित मोर्चा का उपाध्यक्ष बनाया गया, तीन बार वह इस मोर्चे के अध्यक्ष भी रहे। दुष्यंत कुमार गौतम हरियाणा से राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं।

बीजेपी ने केजरीवाल के खिलाफ खोला मोर्चा

दुष्यंत के करोलबाग से चुनाव लड़ने के फैसले ने इस क्षेत्र में भाजपा के प्रचार-प्रसार को और मजबूती दी है। बीते कुछ दिनों से वे प्रचार में जुटे हुए है। बीजेपी उम्मीदवार लगातार केजरीवाल के खिलाफ बोला रहे है। यह देखना दिलचस्प होगा कि राजनीति में उनका अनुभव और विवादों की तीव्रता इस बार उन्हें करोल बाग की जनता से कितना समर्थन प्राप्त करती है।

11 साल से सीट पर AAP का कब्जा

करोलबाग सीट पर बीते 11 सालों से आप पार्टी का कब्जा है। अनुसुचित जाति के लिए सुरक्षित इस विधानसभा सीट पर तीन बार बीजेपी और तीन बार आप ने जीत दर्ज की है। जब तब बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस से आमने-सामने का था तब चार में से तीन बार बीजेपी के सुरेंद्र पाल रतवाल जीते थे।

तीन बार के AAP विधायक की बढ़ाई मुश्किल

आम आदमी पार्टी ने साल 2013 और 2020 में विशेष रवि टिकट दिया। रवि ने दोनों बार बीजेपी उम्मीदवार योगेंद्र चांदोलिया को पटकनी दी। फायरब्रांड की पहचान रखने वाले चांदोलिया को दोनों बार 30 हजार से ज्यादा वोटों से हार का मुंह देखना पड़ा। माना जा रहा है कि तीन बार के आप विधायक इस बार भी बीजेपी के लिए मुश्किल बढ़ा सकता है।
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करोलबाग के मुद्दे

करोल बाग क्षेत्र में कई मुद्दे प्रमुख हैं, जिनका स्थानीय नागरिकों के लिए सीधा प्रभाव पड़ता है। इस क्षेत्र के पार्षद, दिल्ली के महापौर और नगर निगम के तीन वार्ड—पहाड़गंज, करोलबाग, और देव नगर—स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन मुद्दों को समझने के लिए, यहां के कुछ प्रमुख समस्याओं की चर्चा की गई है:
सफाई: करोल बाग और आसपास के इलाकों में सफाई व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा है। खासतौर पर थोक बाजारों में, जहां भारी भीड़ और व्यापार होता है, वहाँ कचरे का ढेर लगना और स्वच्छता की कमी एक प्रमुख समस्या बन जाती है। इस मुद्दे को लेकर स्थानीय निवासियों और व्यापारियों के बीच असंतोष देखा जा रहा है।
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पार्किंग: करोल बाग का इलाका संकरी गलियों और भीड़-भाड़ वाले बाजारों से घिरा हुआ है, जहां पार्किंग की सुविधा सीमित है। विशेष रूप से व्यापारी वर्ग और पर्यटकों के लिए पार्किंग की समस्याएं लगातार बनी रहती हैं। यह न केवल सड़क यातायात को प्रभावित करता है, बल्कि सार्वजनिक सुविधा के लिए भी चुनौती बनता है।
जलभराव: बारिश के मौसम में जलभराव भी यहां की एक बड़ी समस्या है। करोल बाग में कई जगहों पर सीवेज और ड्रेनेज सिस्टम की कमी के कारण जलभराव की स्थिति उत्पन्न होती है, जो इलाके के निवासियों और व्यापारियों के लिए परेशानी का कारण बनता है।

स्थानीय पार्षदों और महापौर पर दबाव

इन मुद्दों को लेकर, करोलबाग के स्थानीय पार्षदों और महापौर पर दबाव बढ़ता है कि वे इन समस्याओं का समाधान करें। स्थानीय प्रशासन, खासकर आप पार्टी और बीजेपी के पार्षदों, को इस दिशा में गंभीर कदम उठाने की जरूरत है। इस क्षेत्र के मुद्दों के समाधान की दिशा में चुनावी वादों का भी बड़ा प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि यह समस्याएँ केवल स्थानीय नागरिकों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि राजनीतिक दलों के लिए भी एक महत्वपूर्ण चुनावी एजेंडा बन सकती हैं।

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