12 से 13 करोड़ में बिकती थी रेडियोलॉजी जैसे डिपार्टमेंट में सीट
जेपी नड्डा ने कहा कि सदन में कोई मेरी बात को झुठला कर बता दे कि मैं झूठ कह रहा हूं। यदि रेडियोलॉजी जैसे डिपार्टमेंट में जाना हो तो यह सीट 12 से 13 करोड़ में बिकती थी। यह एक ओपन बिजनेस बन गया था। पहले मां-बाप के साथ बच्चे एक एग्जाम देने के लिए भुवनेश्वर जाते थे, एक एग्जाम देने के लिए वे चेन्नई जाते थे, एक एग्जाम देने के लिए त्रिवेंद्रम जाते थे, एक एग्जाम देने के लिए मुंबई जाते थे। कहां-कहां चक्कर नहीं लगाते थे। पैसा खर्च होता था, समय बर्बाद होता था और इसके साथ ही भयंकर भ्रष्टाचार था। एडमिशन लिस्ट आधे घंटे से 45 मिनट तक के लिए लगाई जाती थी और फिर हटा दी जाती थी। इसके बाद कहा जाता था कि उम्मीदवार नहीं आया, जिसके कारण हम अपने विवेकाधिकार पर दाखिला दे रहे हैं। यह धंधा बन गया था, लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित था।
सेंटर्स में हुई बढ़ोतरी
जेपी नड्डा ने कहा कि आप ही बताइए आपको एक राज्य में भेज दें, जिसके आप रास्ते तक नहीं जानते हों, उस मेडिकल एजुकेशन में क्या चल रहा है, उसके बारे में क्या पता लगेगा। वह क्या देखेगा कि मेरी लिस्ट लगी है या नहीं। आज मुझे बताते हुए खुशी होती है कि नीट के 154 शहरों में जो एग्जाम होते थे, आज आज वे परीक्षाएं 571 शहरों में ली जाती हैं। इसमें 270 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। पहले एक ही शहर में सेंटर्स होते थे। 2019 में हमने 2,546 सेंटर्स से यात्रा शुरू की थी। यह आज बढ़कर यह 4,750 सेंटर्स हो गई है। जेपी नड्डा ने कहा कि सोशल कैटेगरी की दृष्टि से यदि हम देखें तो 2019 से 2024 तक में सोशल कैटेगरी में क्वालीफाई में 65 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई। आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों की कैटेगरी में 102 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। नीट में एसटी की 93.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। एससी में 78.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। ओबीसी के क्वालीफाइंग में 65 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
क्षेत्रीय आकांक्षा को एड्रेस किया
जेपी नड्डा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का निर्देश था कि क्षेत्रीय भाषाओं में क्षेत्रीय आकांक्षा को एड्रेस करो। नीट में पहली बार हम लोगों ने मलयालम, तेलुगू, तमिल, कन्नड़ भाषाओं में टेस्ट शुरू किया। होड़ मच गई, सभी राज्यों से डिमांड आई, हमने किसी को मना नहीं किया, आज कुल मिलाकर 13 भारतीय भाषाओं में यह टेस्ट हो रहा है। इसका नतीजा यह हुआ कि आज सरकारी स्कूल का पढ़ा हुआ बच्चा मेडिकल एजुकेशन में आ रहा है। पहले मेडिकल एजुकेशन प्रिविलेज क्लास के लिए था। मेडिकल एजुकेशन में जाने, डॉक्टर बनने का मतलब यह था कि आप किसी इंग्लिश मिशनरी स्कूल, पब्लिक स्कूल के प्रोडक्ट हों। इंग्लिश में वन लैंग्वेज में एग्जाम होता था। कहीं कोई बहुत मेधावी छात्र ही कंपीट कर पाता था। आज केरल का, तमिलनाडु का, ओडिशा का, गुजरात का आदिवासी बच्चा, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली का बच्चा नीट में इसलिए आ रहा है, क्योंकि वह अपनी ही भाषा में मेडिकल की परीक्षा दे सकता है।