शांतिश्री धुलिपुड़ी ने कहा कि ‘मनुस्मृति में महिलाओं को शूद्रों का दर्जा दिया गया है।’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘मैं सभी महिलाओं को बता दूं कि मनुस्मृति के मुताबिक सभी महिलाएं शूद्र हैं।’ ऐसे में कोई भी महिला यह दावा नहीं कर सकती कि वह ब्राह्मण या कुछ और हैं। महिलाओं को जाति अपने पिता या पति से मिलती है।
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शांतिश्री यही नहीं रुकीं उन्होंने आगे कहा कि, ‘कोई भी देवता ब्राह्मण नहीं है, सबसे ऊंचा क्षत्रिय है। भगवान शिव अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से होने चाहिए क्योंकि वह एक सांप के साथ एक श्मशान में बैठते हैं और उनके पास पहनने के लिए बहुत कम कपड़े हैं। मुझे नहीं लगता कि ब्राह्मण श्मशान में बैठ सकते हैं।’
जेएनयू की कुलपति शांतिश्री ने कहा कि, ‘लक्ष्मी, शक्ति, या यहां तक कि जगन्नाथ सहित देवता ‘मानव विज्ञान की दृष्टि से’ उच्च जाति से नहीं हैं।’ वास्तव में, जगन्नाथ का आदिवासी मूल है।
उन्होंने कहा, ‘तो हम अभी भी इस भेदभाव को क्यों जारी रखे हुए हैं जो बहुत ही अमानवीय है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम बाबा साहेब के विचारों पर फिर से सोच रहे हैं। हमारे यहां आधुनिक भारत का कोई नेता नहीं है जो इतना महान विचारक था।’
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