उन्होंने कहा कि परंपरागत रूप से न्यायिक स्वतंत्रता को कार्यपालिका से स्वतंत्रता के रूप में परिभाषित किया गया है। लेकिन अब हालात बदले हैं। सोशल मीडिया के इस दौर में अनेक हितबद्ध और दबाव समूह हैं जो इस मीडिया का उपयोग करके अदालतों पर खास दिशा में जाने का दबाव डालने का प्रयास करते हैं। ये प्रेशर ग्रुप्स ‘मेरे पक्ष में निर्णय लेते हैं तो आप स्वतंत्र हैं, नहीं तो आप आजाद नहीं’ प्रचारित करते हैं। जब चुनावी बांड को रद्द किया तो उन्हें स्वतंत्र कहा गया, लेकिन जब उन्होंने सरकार के पक्ष में एक अन्य मामले में फैसला दिया तो उनकी आलोचना की गई। सीजेआई ने कहा कि यह स्वतंत्रता की मेरी परिभाषा नहीं है। जज न्याय के संतुलन के बारे में निर्णय लें, चाहे वह किसी के भी पक्ष में क्यों न हो।
वरिष्ठ नहीं होने से नहीं बनीं महिला जज
अपने करीब दो साल के कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त 18 जजों में से एक भी महिला नहीं होने के सवाल पर सीजेआइ ने कहा कि वरिष्ठता क्रम में कोई महिला जज नहीं होने के कारण ऐसा नहीं हो सका। उन्हें इस बात का अफसोस नहीं है क्योंकि वे अनेक कॉलेजियम का हिस्सा रहे हैं जिन्होंने महिला जजों की नियुक्ति की सिफारिश की।
कोटे से नहीं, उत्कृष्टता से बनते हैं जज
उच्च न्यायपालिका में आरक्षण की आवश्यकता के सवाल पर सीजेआई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में, हमने अधिक विविधता रखने का सचेत निर्णय लिया। उच्च न्यायपालिका में आरक्षण की व्यवस्था नहीं है लेकिन हमने समाज के अधिक हाशिए वाले वर्गों से जज बनाने के प्रयास किए हैं। एक खास समुदाय से हमने शीर्ष अदालत में एक जज बनाया क्योंकि वे उत्कृष्ट और योग्य न्यायाधीश थे। वे किसी कोटे के तहत नहीं आते थे।