जाट बनाम गैर जाट समीकरण में उलझे मतदाता
कैथल विधानसभा सीट (Kaithal Assembly Seat) का चुनाव जाट और गैर जाट समीकरणों के बीच उलझता दिख रहा है। कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ तीन अन्य जाट प्रत्याशियों के उतरने से वोटों के बंटवारे से नुकसान भी हो सकता है। यहां आम आदमी पार्टी और जेजेपी ने जाट चेहरे के रूप में सतबीर गोयत और संदीप गढ़ी को उतारा है। जेजेपी के बागी बलराज नौच भी जाट वर्ग से आते हैं। उधर, भाजपा से गुर्जर चेहरे लीलाराम के साथ इनेलो-बसपा गठबंधन से भी गुर्जर चेहरे अनिल तंवर के ताल ठोकने से गुर्जर वोटों में बंटवारा हो सकता है।
आदित्य को कैथल की जानकारी नहीं – लीलाराम
भाजपा प्रत्याशी लीलाराम गुर्जर (Leela Ram Gurjar) ने पत्रिका से कहा कि वे क्षेत्र की जनता के लिए सहज उपलब्ध रहते हैं और सुख-दुख में भागीदार रहते हैं, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी आदित्य परिवारवाद की देन हैं। विदेश से पढ़कर आए आदित्य को कैथल के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
कैथल के विकास का विजन तैयार- आदित्य
आदित्य सुरजेवाला ((Aditya Surjewala) ) ने पत्रिका से बातचीत के क्रम में लीलाराम को जवाब देते हुए कहा कि भले ही उनकी पढ़ाई विदेश से हुई है लेकिन वे अपने पिता रणदीप सुरजेवाला के साथ क्षेत्र की जनता के सुख-दुख से जुड़े रहे हैं। कैथल के विकास को लेकर उन्होंने पहले से विजन तैयार कर रखा है।
कौन भारी, कौन कमजोर, अभी कहना मुश्किल
कैथल का सबसे बड़ा गांव है क्योड़क। 10 हजार से अधिक आबादी वाले इस गांव को मुख्यमंत्री रहते मनोहर लाल खट्टर ने गोद ले रखा था। इस गांव में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी लगा है। यहां मिले सेवानिवृत्त शिक्षक सुरेश शर्मा कहते हैं कि सीट पर लड़ाई तो कांग्रेस और भाजपा के बीच है। राज्य की बेहतरी के लिए किस दल का क्या विजन है, इसको देखकर ही परिवार वोट करेगा। कैथल जिला मुख्यालय पर मिले स्थानीय पत्रकार सुखविंदर कहते है कि यहां आदित्य अपने पिता रणदीप सुरजेवाला की पहचान के भरोसे चुनाव लड़ रहे हैं तो भाजपा प्रत्याशी लीलाराम गुर्जर 5 साल के कार्यकाल के कार्यों के दम पर। यह कहना मुश्किल है कि कौन भारी है और कौन कमजोर है। महाराजा अग्रसेन शक्ति स्थल के पास मिले आशुतोष कुमार कहते हैं कि सिटी में पार्किंग की समस्या का समाधान नहीं हुआ है। 10 साल की सरकार के कारण लोगों में कुछ नाराजगी है।
अपनी हार का बदला लेना चाहते हैं रणदीप
जाट, गुर्जर, पंजाबी, वैश्य बहुल इस सीट पर के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला 2009 और 2014 का चुनाव जीत चुके हैं लेकिन 2019 में उन्हें भाजपा प्रत्याशी लीलाराम से महज 1246 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था। इस बार रणदीप खुद तो नहीं लेकिन बेटे के माध्यम से लीलाराम से हार का बदला लेने की कोशिश में हैं जबकि लीलाराम एक बार फिर सुरजेवाला परिवार को चुनाव में पटखनी मिलने का दावा करते हैं।