25 सितंबर को होने वाली इस बैठक में भारत की ओर से विदेश मंत्री एस. जयशंकर और पाकिस्तान की ओर से विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी शामिल होंगे। लेकिन सूत्रों ने स्पष्ट कर दिया है कि सार्क बैठक के बीच भारत और पाकिस्तान के बीच कोई बातचीत या फिर किसी तरह की मुलाकात नहीं होगी। पिछले साल कोरोना महामारी की वजह से यह बैठक वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हुई थी।
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आधिकारिक सूत्रों की मानें तो सार्क बैठक के दौरान भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर आतंकवाद मुद्दे पर पाकिस्तान का नाम लिए बिना अपनी चिंता से अवगत कराएंगे। साथ ही, अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के कब्जे के बाद सार्क के मंच से विदेश मंत्री भारत का रुख भी स्पष्ट करेगे। इससे पहले, शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन और नई व्यवस्था की मान्यता पर फैसला अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सोच-समझकर और मिलजुलकर लेना चाहिए।
गत 17 सितंबर को आयोजित शंधाई सहयोग संगठन सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन बिना बातचीत के हुआ है। यह नई व्यवस्था की स्वीकृति पर सवाल खड़े करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि दुनियाभर में कट्टरपंथ तेजी से बढ़ रहा है। अफगानिस्तान में हाल ही में हुई घटनाओं ने इस चुनौती को और बढ़ा दिया है। जिस समय प्रधानमंत्री मोदी अफगानिस्तान के मुद्दे का जिक्र कर रहे थे, तब उस बैठक में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और चीन के राष्ट्रपति भी मौजूद थे।
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प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि यदि हम इतिहास पर नजर डालें तो देखते हैं कि मध्य एशिया का क्षेत्र मॉडरेट और प्रोग्रेसिव कल्चर और मूल्यों को गढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि सूफीवाद जैसी परंपराएं यहां सदियों से पनपी और पूरे क्षेत्र तथा विश्व में फैली। इनकी छवि हम आज भी इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत में देख सकते हैं।