मामला 1993 का है, जब यूपी के देवरिया के बीरबल भगत को भोरे थाना के हरिहरपुर गांव के रहने वाले सूर्यनारायण भगत के अपहरण व हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। दरअसल, सूर्यनारायण भगत 11 जून 1993 को देवरिया के बनकटा थाना क्षेत्र के टड़वां गांव के रहने वाले युवक बीरबल भगत के साथ मुजफ्फरपुर के लिए घर से निकले थे। उसके बाद से अचानक वो लापता हो गए, परिजन ने काफी तलाश की लेकिन कुछ पता नहीं चल पाया।
काफी तलाश करने के बाद 18 जून 1993 को सूर्यनारायण भगत के पुत्र सत्यनारायण भगत के बयान पर भोरे थाना (कांड संख्या-81/93) में मामला दर्ज कर बीरबल भगत को नामजद अभियुक्त बनाया गया। बाद में देवरिया पुलिस ने एक अज्ञात शव को जब्त किया, जिसका यूडी केस दर्ज कर शव को दफना दिया गया था। कुछ दिनों बाद परिजनों ने देवरिया पुलिस से मिली तस्वीर के आधार पर पहचाना कि सूर्यनारायण भगत का ही शव था।
देवरिया की पुलिस ने बीरबल भगत को 27 जनवरी 1994 को एक दूसरे आपराधिक मामले में गिरफ्तार किया उसमें 11 वर्षों तक सजा काटने के बाद भोरे पुलिस ने रिमांड पर लेकर गोपालगंज जेल में बंद कर दिया था। उसे अपराधी मानकर परिजन व रिश्तेदारों ने भी उसे जेल में छोड़ दिया। किसी ने जमानत तक कराने के लिए कोर्ट में अर्जी नहीं दी और न ही कोई जेल में मिलने आया।
केस की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो रही थी। फास्ट ट्रैक कोर्ट के वर्षों से बंद रहने के कारण इस कांड की सुनवाई वर्षों तक बाधित रही। आखिर में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश की कोर्ट में जब मामला पहुंचा तो कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेकर ट्रायल को पूरा कराने के लिए सुनवाई शुरू की थी। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश-5 की कोर्ट में जब केस ट्रांसफर होकर पहुंचा, तो कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लिया। वहीं, कोर्ट ने पुलिस की चूक पर टिप्पणी किया है।
केस के ट्रायल के दौरान पुलिस ना तो कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रख सकी और ना ही कांड के अनुसंधानकर्ता ही कोर्ट में गवाही के लिए आए। इसके अलावा ना ही पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर पहुंचे और ना ही पुलिस की ओर से चार्जशीट सौंपी गई। अंत में गुरुवार को अभियुक्त को दोषमुक्त पाते हुए बाइज्जत बरी कर दिया। कागजी कार्रवाई पूरा होने के बाद शुक्रवार को बीरबल जेल से छूट जायेगा। कोर्ट का फैसला सुनते ही आरोपित कोर्ट में फूट-फूट कर रो पड़ा।
जेल में रहने के दौरान ही बीरबल के माता-पिता का निधन हो गया और वह उनकी अर्थी को कंधा तक नहीं दे सके। इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर एक निर्दोष नागरिक की जिंदगी तबाह करने की जिम्मेदारी कौन लेगा? इस मामले ने न्याय तंत्र की मौजूदा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।