देश की आबादी में 18 वर्ष से कम आयु बच्चों की संख्या 41 फीसदी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ की सेंटर फॉर इमरजेंसी एंड ट्रामा ऑफ साउथईस्ट एशिया ने इस विषय पर एक्सपर्ट्स की एक कमेटी बनाई है। जिन्होंने एक टूलकिट विकसित किया है, जिसका इस्तेमाल भारत में कोरोना की तीसरी लहर के दौरान अस्पताल कर सकते हैं।
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इस टूलकिट में डॉक्टर्स और हॉस्पिटल स्टाफ व प्रबंधन को अहम सुझाव दिए गए हैं। इस टूलकिट के अनुसार, अगर भारत में कोरोना की तीसरी लहर आती है तो इससे 5 करोड़ से ज्यादा बच्चे प्रभावित हो सकते हैं। ऐसे हालात में बच्चों के इलाज के लिए टूलकिट में सुझाव दिए गए हैं।
टूलकिट में विशेषज्ञों के अहम सुझाव के तहत अस्पतालों में बेडों की संख्या करीब 60 लाख तक हो और आईसीयू बेड्स की संख्या करीब 30 लाख हो। टूलकिट में सुझाव दिया गया है कि मरीजों की संख्या बढ़ने पर अस्पतालों के पास स्क्रीनिंग के लिए पर्याप्त जगह होनी चाहिए।
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साथ ही बच्चों के ICU वार्ड्स और हाई डिपेंडेंसी यूनिट्स की संख्या अधिक होनी चाहिए। एक्सपर्ट्स का कहना है कि, सामान्यतः सभी बेड्स पर ऑक्सीजन डिलीवर करने की सुविधा होनी चाहिए। बेड्स को इस तरह से सेट किया जाए कि उनकी ऊंचाई फ्लोर से सबसे कम हो और सभी इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल के साथ हो।
कोई भी मरीज, जिसे बुखार, खांसी, नाक बहना, गले में खराश और सांस लेने में तकलीफ हो या डायरिया, त्वचा पर चकत्ते व घर में पहले से कोई कोविड पॉजिटिव है तो, बच्चे का तुरंत टेस्ट कराया जाना चाहिए। वहीं गंभीर रूप से पीड़ित वे बच्चे जिन्हें सांस में अधिक परेशानी हो या जिनका PCO2 का स्तर बढ़ा हुआ हो, ऐसे बच्चों को ICU वार्ड में शिफ्ट करने पर विचार करना चाहिए।
इस टूलकिट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि अस्पताल स्टाफ को बच्चों की मानसिक तौर पर देखभाल करने के लिए भी प्रशिक्षण देना चाहिए। कुछ मामलों में मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल की मदद भी उपयोगी हो सकती है।
इस टूलकिट को विशेषज्ञ डॉक्टरों के एक पैनल ने तैयार किया है। जिसमें AIIMS, कलावती सरन चिल्ड्रेन हॉस्पिटल, गुरु तेग बहादुर हॉस्पिटल, मणिपाल हॉस्पिटल और अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित सारासोटा मेमोरियल हॉस्पिटल के डॉक्टर्स शामिल हैं।