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Caste Census in Bihar: बिहार सरकार क्यों कराना चाहती है जातिगत जनगणना? जानें इसके पीछे की कहानी

Caste Census in Bihar : आखिर बिहार की नीतीश सरकार जातीय जनगणना कराने के पीछे क्यों पड़ी है? इसपर बिहार में इतना विवाद क्यों छिड़ा है? जातीय जनगणना अगर होती है, तो किसका कितना नफा नुकसान होगा? इसके राजनीतिक मायने क्या हैं? आइए जानते हैं…

May 05, 2023 / 07:56 am

Paritosh Shahi

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Caste Census in Bihar : बिहार में जातीय जनगणना पर पटना हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है। 3 जुलाई को इस मामले में अगली सुनवाई होगी। इस दौरान कोई भी डेटा बाहर नहीं आएगा। बिहार की नीतीश सरकार के लिए यह बड़ा झटका माना जा रहा है। जातीय जनगणना के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने गुरुवार को अंतरिम आदेश जारी किया। पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की पीठ ने इस मामले पर बहस पूरी होने के बाद गुरुवार को फैसला सुनाया। ये जातीय जनगणना शुरू से ही विवादों में रही है। इसके खिलाफ दायर याचिका में कहा गया था कि बिहार सरकार को इसे कराने का संवैधानिक अधिकार नहीं है।

 

सबसे पहले जानिए कितना काम पूरा हुआ था

बिहार सरकार द्वारा दो चरणों में जातीय जनगणना का काम पूरा करने का एलान किया था। अभी इसका दूसरा फेज चल रहा है। फर्स्ट फेज जनवरी में पूरा हो गया था। फिर पिछले महीने 15 अप्रैल से दूसरे फेज की शुरुआत हुई, जो 15 मई तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था। पहले चरण में लोगों के घरों की गिनती की गई। इसकी शुरुआत पटना के वीआईपी इलाकों से हुई। इसके बाद लोगों को उनके घर का एक नंबर मिला था, जो पहचान के रूप में दी गई थी।

दूसरे फेज में जाति और आर्थिक जनगणना का काम शुरू हुआ। इसमें लोगों के शिक्षा का स्तर, नौकरी (प्राइवेट, सरकारी, गजटेड, नॉन-गजटेड आदि), गाड़ी , मोबाइल, किस काम में निपुणता/ट्रेंड है, आय के क्या-क्या साधन है, परिवार में कमाने वाले कितने सदस्य हैं, एक व्यक्ति पर कितने लोग आश्रित हैं, मूल जाति, उप जाति, गांव में जातियों की संख्या, जाति प्रमाण पत्र से जुड़े सवाल पूछे जा रहे थे। दूसरा चरण को 15 मई निपटाना था। जिस पर गुरुवार 4 मई को पटना हाई कोर्ट ने रोक लगा दी।

बिहार सरकार इसलिए कराना चाहती है जातिगत जनगणना

1. सियासी फायदा:
बिहार में ओबीसी और ईबीसी को मिलाकर कुल आबादी 52% से ज्यादा है। हालांकि अभी तक बिहार में कोई जातिगत जनगणना हुई नहीं है फिर भी कई रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि बिहार में करीब 14 फीसदी यादव जाति के लोग हैं। कुर्मी जाति की आबादी चार से पांच प्रतिशत हैं। कुशवाहा मतदाताओं की संख्या आठ से नौ प्रतिशत के बीच है।

सर्वणों की बात करें तो राज्य में इनकी कुल आबादी लगभग 15-17% है। इनमें भूमिहार 4%, ब्राह्मण 6%, राजपूत 6% और कायस्थ की जनसंख्या 1% है। बिहार में अति पिछड़ा वर्ग भी निर्णायक संख्या में है। ऐसे में पूरा खेल इन्हीं वोटों के लिए किया जा रहा है। महागठबंधन में शामिल सभी राजनीतिक दलों को इसमें बहुत फायदा दिखता है। उन्हें लगता है कि इसके जरिए बीजेपी द्वारा की जा रही धर्म की राजनीति का काट निकलेगा और लोग धर्म के बजाय जाति के आधार पर वोट डालेंगे। इसका सबसे ज्यादा फायदा नीतीश-तेजश्वी के महा गठबंधन को मिल सकता है।

2. जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी- जातिगत जनगणना की मांग लंबे समय से हो रही है। राज्य में जिस जाति की आबादी ज्यादा है उनके समितियों द्वारा एक नारा खूब लगाया जाता है। ‘जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’। मतलब आबादी के हिसाब से ही आरक्षण दिया जाए।

ओबीसी वर्ग से आने वाले लोगों का कहना है कि एससी-एसटी को संख्या के आधार पर आरक्षण दिया जा रहा है। इसी तरह ओबीसी को भी उनकी आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया जाए। मतलब ये हुआ की टैलेंट और मेहनत बाद में देखा जाए। पहले ये देखा जाए की फलाना आदमी किस जाति से आता है।

राजनीतिक मायने क्या हैं?

सभी विपक्षी पार्टियां भाजपा पर यह आरोप लगाती है कि भाजपा देश में सांप्रदायिक माहौल बनाती है। खूब हिंदू-मुस्लिम करती है। जिससे ऐसा माहौल बन जाता है कि लोग जाति के बंधनों को तोड़कर एक हो जाते हैं और धर्म के नाम पर बीजेपी को अपना वोट दे आते हैं। 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव का उदाहरण देकर कई विपक्षी पार्टियां कह चुकी है कि अगर भाजपा धर्म आधारित राजनीति नहीं करती तो इतना बड़ा मैंडेट उन्हें किसी भी हाल में नहीं मिल पाता।

तो इससे यह पता चलता है कि भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति को जवाब देने के लिए विपक्षी दल जातिगत राजनीति कर रही है। ताकि 2024 में होने वाले चुनाव में भाजपा को वैसे प्रदेशों से अच्छी खासी टक्कर दी जा सके जहां सीटों की संख्या ज्यादा है। उदाहरण के तौर पर बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र देख सकते हैं। सारी कवायद इसीलिए हो रही है की अगले चुनाव में कैसे भी कर के मतों का विभाजन हो सके, ताकि भाजपा को लगातार तीसरी बार सत्ता में आने से रोका जा सके।

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