वक्फ बिल पर केंद्र को मिला जेडीयू-टीडीपी का समर्थन
पिछले दिनों जब संसद में वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर बहस चल रही थी तब एनडीए की सहयोगी जदयू और तेलुगु देशम पार्टी ने इसका समर्थन किया था। जदयू कोटे से मोदी कैबिनेट में मंत्री ललन सिंह ने कहा था कि इस बिल में कुछ भी ऐसा नहीं है जो देश के अल्पसंख्यकों के अधिकार के विरोध में है। वहीं, टीडीपी के जीएम हरीश ने बिल का समर्थन करते हुए कहा, ‘टीडीपी वक्फ संशोधन विधेयक का समर्थन करती है। सुधार लाना और उद्देश्य को सुव्यवस्थित करना सरकार की जिम्मेदारी है। हम विधेयक का समर्थन करते हैं. हमें इसे सलेक्ट कमेटी को भेजने में कोई समस्या नहीं है।’
वक्फ बोर्ड क्या है? (What is Waqf Board)
वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 गत 8 अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया था। विपक्ष के विरोध के बाद इसे संसद की स्थायी समिति को भेज दिया गया है। बता दें कि ‘वक्फ’ अरबी का शब्द है जिसका मतलब खुदा के नाम पर ली गई वस्तु या परोपकार के लिए दिया गया धन होता है। इसमें चल और अचल दोनों संपत्तियों को शामिल किया जाता है। कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति वक्फ कर सकता है। अगर एक बार कोई संपत्ति वक्फ हो गई तो वह वापस नहीं ली जा सकती। वक्फ संपत्ति के प्रबंधन का काम करने वाला वक्फ बोर्ड एक कानूनी इकाई है। देश में शिया और सुन्नी के अलग-अलग वक्फ बोर्ड हैं।
2009 के बाद संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि हुई
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो देश में वक्फ बोर्ड के पास आठ लाख एकड़ से अधिक जमीन है। वर्ष 2009 में केवल चार लाख एकड़ जमीन थी, लेकिन इसके बाद वक्फ की जमीन में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इस जमीन के अधिकांश हिस्से पर मस्जिद, मदरसा, और कब्रिस्तान हैं। वक्फ बोर्ड की संपत्ति की कीमत करीब 1.2 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है। देश में उत्तर प्रदेश और बिहार से संचालित दो शिया वक्फ बोर्ड समेत कुल 32 वक्फ बोर्ड हैं। भारतीय रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद देश में सबसे अधिक संपत्ति सम्मिलित रूप से वक्फ बोर्डों के पास है।
क्या है अधिनियम का सेक्शन-40, जिस कारण मचा घमासान
वक्फ बोर्ड पर विवाद की जड़ में वक्फ अधिनियम का सेक्शन 40 है। इसके तहत बोर्ड को ‘रीजन टू बिलीव’ की शक्ति दी गई है। आर्टिकल 40 के अनुसार यदि बोर्ड को लगता है कि कोई संपत्ति वक्फ की संपत्ति है तो वह खुद ही इसकी जांच कर सकता है और इस संपत्ति के वक्फ का होने का दावा पेश कर सकता है। अगर इससे किसी को समस्या है तो वह व्यक्ति या संस्था अपनी आपत्ति को वक्फ ट्रिब्यूनल के पास दर्ज करा सकता है। इसके बाद ट्रिब्यूनल के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। लेकिन, यह प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो अगर कोई संपत्ति एक बार वक्फ घोषित हो जाती है तो उसे वक्फ से लेना बहुत ज्यादा मुश्किल है। इसी वजह से कई विवाद सामने आए हैं। एक हालिया उदाहरण 2022 में तमिलनाडु का है जहां वक्फ बोर्ड ने हिंदुओं के एक पूरे गांव जिसका नाम थिरुचेंदुरई था, पर दावा ठोक दिया। इसके अलावा बेंगलुरु का ईदगाह मैदान विवाद भी चर्चा में रहा है। इस पर वक्फ बोर्ड 1950 से वक्फ संपत्ति होने का दावा कर रहा है।
एक विवाद सूरत नगर निगम भवन का है, जिसके वक्फ संपत्ति होने का दावा किया जा रहा। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि इस जमीन को मुगल काल से ही सराय के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। इस अधिनियम में संशोधन के पीछे सरकार का तर्क है कि वक्फ बोर्डों को असीमित स्वायत्तता है। नये संशोधनों का उद्देश्य वक्फ में पारदर्शिता लाना है।