बीआईएस के महानिदेशक प्रमोद कुमार तिवारी ने कहा कि 2जी फीडस्टॉक से प्राप्त पैराफिनिक (हरित) डीजल पर मानक विकसित करने का काम भी प्रगति पर है। इन मानकों की मदद से जैव ईंधन उत्पादन की क्षमता में वृद्धि हासिल की जा सकती है। इससे न केवल वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य और नवीकरणीय स्रोतों के माध्यम से 50 प्रतिशत ऊर्जा के लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी, बल्कि यह मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, वेस्ट टू वेल्थ, किसानों की आय में वृद्धि जैसे कई अन्य उद्देश्यों को प्राप्त करने में भी कारगर साबित हो सकेगा।
ये मानक किए तैयार
ब्यूरो ने मोटर गैसोलीन में सम्मिश्रण घटक के रूप में उपयोग के लिए निर्जल इथेनॉल, बायोडीजल बी-100 – फैटी एसिड मिथाइल एस्टर फेम, बायोगैस (बायोमेथेन), बायोडीजल डीजल ईंधन ब्लेंड बी8 से बी20, ऑटोमोटिव ईंधन में उपयोग के लिए हाइड्रस इथेनॉल, ई85 ईंधन (निर्जल इथेनॉल और गैसोलीन का मिश्रण), स्पार्क प्रज्वलित इंजन चालित वाहनों के लिए ईंधन के रूप में ई 20 ईंधन, विमानन टरबाइन ईंधन तथा पॉजिटिव इग्निशन इंजन चालित वाहनों में उपयोग के लिए इथेनॉल जैसे मानक विकसित किए हैं।
भारत सबसे बड़े उत्पादकों में
ब्यूरो की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि अमरीका, ब्राजील और भारत जैव ईंधन के प्रमुख उत्पादक हैं। तीनों देश संयुक्त रूप से वैश्विक स्तर पर इथेनॉल के 85 प्रतिशत उत्पादन और 81 फीसदी खपत में भागीदारी रखते हैं। वैश्विक इथेनॉल बाजार का मूल्य बीते वर्ष 99 बिलियन अमरीकी डॉलर था। साल 2032 तक इसमें 5 फीसदी की वार्षिक वृद्धि की उम्मीद है। इससे भारतीय उद्योगों के लिए एक बड़ा अवसर पैदा होगा।