2002 के गुजरात दंगों के दौरान अहमदाबाद के पास रणधी कपूर गांव में एक भीड़ ने बिलक़ीस बानो के परिवार पर हमला किया था। इस दौरान पांच महीने की गर्भवती बिलक़ीस बानो के साथ गैंगरेप किया गया। उनकी तीन साल की बेटी सालेहा की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई। उस वक़्त बिलक़ीस क़रीब 20 साल की थीं। इस दंगे में बिलक़ीस बानो की मां, छोटी बहन और अन्य रिश्तेदार समेत 14 लोग मारे गए थे।
वहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने मामले की जांच की और 2004 में 11 आरोपियों को गिरफ्तार कर मुंबई ले जाया गया था। सीबीआई की विशेष अदालत ने साल 2004 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। वहीं, 21 जनवरी 2008 को मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने बिलक़ीस बानो के साथ गैंग रेप और उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। जिस सजा को बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा था।
15 साल से अधिक कैद की सजा काटने के बाद इन दोषियों ने अपनी रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को सजा में छूट के मुद्दे पर गौर करने का निर्देश दिया था। कोर्ट के निर्देश के बाद गुजरात सरकार ने इस मामले में एक समिति का गठन किया। समिति ने मामले के सभी 11 दोषियों को रिहा करने के पक्ष में एकमत से फैसला लिया और राज्य सरकार को सिफारिश भेजी गई जिसके बाद रिहाई का आदेश दिया गया। राज्य सरकार की रेमिशन पॉलिसी (माफी योजना) के तहत स्वतंत्रता दिवस पर सभी को रिहा कर दिया गया।