पांच सितंबर को रखा गया था फैसला सुरक्षित
शीर्ष अदालत ने 16 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद पांच सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का समर्थन करने वाले हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सालिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरी और अन्य की दलीलें सुनीं। याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह, दुष्यंत दवे और अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने बहस की थी।
कोई सटीक समय सीमा नहीं दे सकते- केंद्र सरकार
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह कोई सटीक समय सीमा नहीं दे सकती है और जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने में “कुछ समय” लगेगा, जबकि यह दोहराते हुए कि इसकी केंद्र शासित प्रदेश की स्थिति “अस्थायी” है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि संविधान पीठ का फैसला चाहे जो भी हो, “ऐतिहासिक” होगा और कश्मीर घाटी के निवासियों के मन में मौजूद “मनोवैज्ञानिक द्वंद्व” को खत्म कर देगा।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के भंग होने के बाद संविधान के अनुच्छेद 370 ने स्थायी स्वरूप ले लिया है। मार्च 2020 में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मुद्दे को सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को सौंपने के याचिकाकर्ताओं के तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। तत्कालीन सीजेआई एन.वी. रमण की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 की व्याख्या से संबंधित प्रेम नाथ कौल मामले और संपत प्रकाश मामले में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए पहले के फैसले विरोधाभासी नहीं थे।