बीएटीसीएस तकनीक यातायात को सुव्यवस्थित करने और ट्रैफिक सिग्नलों पर मैनुअल हस्तक्षेप कम करने के लिए डिजाइन की गई है। इसमें प्रमुख ट्रैफिक कॉरिडोर को साथ मिलाकर ‘ग्रीन वेव्स’ बनाई जाती हैं। इससे वाहनों को कई क्रॉसिंग बिना रुके पार करने की इजाजत मिल जाती है। समय के साथ ईंधन की भी बचत होती है। इस साल मई से बेंगलूरु ट्रैफिक पुलिस ने इस तकनीक को लागू करना शुरू किया था। वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि इस पहल से पूरे शहर की ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने और ट्रैफिक सिग्नल को मैनेज करने के मैनुअल बोझ से छुटकारा मिलेगा। फिलहाल 136 चौराहों को एआइ-संचालित ट्रैफिक सिग्नल से अपग्रेड किया गया है। जल्द ऐसे 29 और सिग्नल लगाए जाएंगे।
टाइमिंग खुद एडजस्ट करता है सिस्टम
बेंगलूरु के संयुक्त ट्रैफिक कमिश्नर एम.एन. अनुचेत का कहना है कि एआइ-संचालित क्षमताओं के कारण बीएटीसीएस काफी अलग है। यह सिस्टम ट्रैफिक जंक्शनों पर लगे कैमरा सेंसर से मिली जानकारियों की मदद से ट्रैफिक के घनत्व का पता लगाता है और उसके आधार पर सिग्नल टाइमिंग को एडजस्ट करता है। इससे ट्रैफिक का बहाव बनाए रखना आसान होता है। जाम में फंसने जैसी समस्याएं कम होती हैं।
जयपुर-भोपाल जैसे शहरों में भी जरूरी
जयपुर, भोपाल और अहमदाबाद समेत देश के कई और शहरों में सडक़ों पर ट्रैफिक का काफी दबाव है। लोगों को जाम से जूझना पड़ता है। इन शहरों में भी बीएटीसीएस तकनीक से राहत मिल सकती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि सेंट्रल मॉनिटरिंग कमांड सेंटर से ट्रैफिक सिग्नलों को कंट्रोल किया जा सकता है। समस्या पर सिग्नल की टाइमिंग एडजस्ट करने में ट्रैफिक पुलिस को आसानी होती है।