scriptदरभंगा में जल प्रलय के बाद से हसन चौक में होती है विशेष दुर्गा पूजा, नहीं दी जाती पशु बलि, लगता है खीर और हलवे का भोग | After the flood in Darbhanga, a special Durga Puja is held in Hasan Chowk, animal sacrifice is not done, kheer and halwa are offered as prasad | Patrika News
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दरभंगा में जल प्रलय के बाद से हसन चौक में होती है विशेष दुर्गा पूजा, नहीं दी जाती पशु बलि, लगता है खीर और हलवे का भोग

Durga Puja in Bihar : भारत के बिहार प्रदेश के दरभंगा जिले के हसन चौक में दुर्गा पूजा का विशेष आयोजन होता है, जहां नेपाल से लोग आते हैं। यह आयोजन बिहार के बारे में बनाई गई कई धारणाओं को तोड़ता है।

नई दिल्लीOct 10, 2024 / 12:26 pm

M I Zahir

Darbhanga Durga Puja

Darbhanga Durga Puja

Durga Puja in Bihar: भारत में दुर्गा पूजा पश्चिम बंगाल में काफी प्रसिद्ध है, लेकिन पश्चिम बंगाल से सटे बिहार राज्य में भी बिहारवासी (Durga Puja in Bihar)बड़े साज-सज्जा और भक्ति भाव से पूजा करते हैं। बिहार (Bihar News) की राजधानी पटना से 150 किलोमीटर दूर दरभंगा (Darbhanga) जिले में भी यह त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। दरभंगा बिहार की राजधानी के बाद दूसरा सबसे बड़ा शहर है, यहां लाल किले की तर्ज पर दरभंगा महाराज का किला जैसी ऐतिहासिक धरोहर मौजूद है। पिछले कुछ दशकों में दरभंगा मिथिला के सबसे विकसित जिलों में से एक बन कर उभरा है। यहां एयरपोर्ट, मेट्रो सेवा और एम्स जैसी सुविधाएं मिलने जा रही हैं।दरभंगा (हसन चौक दरभंगा ) में दुर्गा पूजा ( Durga Puja ) बड़े पैमाने पर मनाई जाती है। पूरे मिथिला और भारत के पड़ोसी देश नेपाल से भी लोग यहां बड़ी संख्या में पूजा और दर्शन के लिए आते हैं।

मिथिला के क्षेत्र में भयंकर बाढ़ आई थी

बुजुर्ग बताते हैं कि यहां पूजा की शुरुआत 1986 ई. में हुई थी, उस समय मिथिला ( Mithila News) के क्षेत्र में भयंकर बाढ़ आई थी। हसन चौक के पास एक विशाल पीपल का पेड़ था जहां एक बाबा जी रहा करते थे। उन्होंने ही पहली बार यहां पूजा शुरू की और तब से लगातार 18 वर्षों से पूजा होती आ रही है। यहां पूजा मिथिला और बनारसी पद्धति से होती आ रही है। अन्य जगहोंं पर बलि भी दी जाती है, लेकिन यह एकमात्र ऐसी जगह है जहां बलि नहीं दी जाती(non-violent worship)। यहां पूजा कराने वाले मुख्य पुजारी अनिल मिश्रा (Anil Mishra) बताते हैं कि यहां देवी मां पूर्ण रूप से शाकाहारी हैं और उन्हें खीर और हलवे का भोग लगाया जाता है। वे बताते हैं कि मां के दर्शन के लिए 2 किलोमीटर तक भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है। यहां की सजावट अन्य जगहों से बेहतर है और पूजा पंडाल भी भव्य है। इसकी निगरानी ड्रोन कैमरे से होती है और शांति समिति और प्रशासन के सदस्य यहां दूर-दूर से आने वाले भक्तों की सुरक्षा करते हैं। उनके लिए पीने के पानी, शौचालय और एंबुलेंस की विशेष व्यवस्था होती है।

पहाड़ों की झलक भी दिखाई जा रही

दरभंगा स्थित एक छात्रा ( स्नातकोत्तर उम्र लगभग 24 ) आकांक्षा बताती हैं कि उनके प्रांगण में बेलनौटी कार्यक्रम होता है। इस स्थान की सबसे बड़ी खासियत यह है कि एक पेड़ पर दो बेल के पेड़ एक साथ पूजे जाते हैं, जो मां को नेत्र अर्पित करते हैं। पिछले पांच सालों से यहां वैष्णो देवी मंदिर, शिवपुरी, आमेर किला, ढोलकपुर शीश महल व कृष्ण तोरण द्वार अन्य स्थानों के पहाड़ों की झलक भी दिखाई जा रही है। इस बार 2024 की दुर्गा पूजा में सभी ज्योतिर्लिंग के दर्शन, स्वामी नारायण मंदिर की झलक यहां देखने को मिलेगी। यहां जो भी भक्त आते हैं, उनमें से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता। ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से मां की पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

खोइछा भरने का काम भी किया जाता है

आकांक्षा बताती हैं कि मिथिला की परंपरा के अनुसार यहां खोइछा भरने का काम भी किया जाता है, जिससे सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आगे लोग बताते हैं कि पिछले 25 वर्षों से यहां पंडित जी भी उत्तर प्रदेश से आ कर पूजा कराते हैं। नवरात्र के अवसर पर जगराता कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है। यहां की एक खास बात यह है कि उत्तम पूजा की सफलता और शांतिपूर्ण पूजा के कारण पूजा समिति के सभी सदस्यों को 26 जनवरी को प्रशासन की ओर से सम्मानित भी किया जाता है। गत 17 वर्षों से समिति के मुख्य सदस्य प्रदीप, प्रभाकर मिश्रा, अनिल पांडेय, अशोक मंडल, सतीश तिवारी, मदन झा, राजू मंडल और अवधेश श्रीवास्तव बताते हैं कि इस वर्ष की पूजा में मूर्ति की ऊंचाई 7 फीट है, जो बेहद खास है।

यहां कलश के ऊपर दीपक हमेशा जलता रहता है

कहते हैं कि दैवीय शक्ति के कारण यहां कलश के ऊपर दीपक हमेशा जलता रहता है, चाहे कितना भी बड़ा तूफान क्यों न आ जाए, यह दीपक बुझता नहीं है। आकृति नाम की एक लड़की जो स्नातक की छात्रा है, कहती है कि यहां मिथिला की संस्कृति झिझिया नृत्य की झलक भी दिखाई जाती है, इस पर प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं, इसके साथ ही हर वर्ष डांडिया नृत्य का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से लड़कियां डांडिया खेलने आती हैं और बड़े उत्साह के साथ खेलती हैं। इसलिए यहां की दुर्गा पूजा अलग और खास होती है।
(यह जानकारी मगध विश्वविद्यालय बोधगया के पत्रकारिता छात्र आशीष रंजन ने दी।)

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