नरसिंह पूजन के साथ होती है शुरुआत
दीवाली के दूसरे दिन पत्थर मेले की शुरूआत नरसिंह पूजन के साथ होती है। इस प्रथा को मानव बलि के बिकल्प के रूप में इस क्षेत्र में सदियों पुरानी परंपरा माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि धामी रियासत की रानी ने सती होने से पहले नर बलि को बंद करने का आदेश दिया था।
हजारों की संख्या में जुटे लोग
धामी गांव में पत्थर मेले को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग जुटे। महिलाओं और बुजुर्गों में भी जोश कम नहीं था। धामी रियासत के उत्तराधिकारी जगदीप सिंह ने राज परिवार की इस परंपरा में पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि के लिए कामना की। पत्थर मेले से पूर्व राज दरबार स्थित नरसिंह देवता और देव कुर्गण के मंदिर में पुजारी राकेश और राजा जगदीप सिंह, राजेंद्र भारद्वाज ने कारिंदों के साथ पूजा की। इसके बाद फिर शोभायात्रा शुरू हुई।
सदियों पुरानी है परंपरा
धामी गांव में पत्थरके खेल की सदियों पुरानी परंपरा है। मान्यता के अनुसार धामी रियासत में एक के बाद एक अनिष्ट होने से रोकने और लोगों की सुख समृद्धि के लिए नर बलि की प्रथा होती थी। यहां की रानी ने इसे बंद करवाया और इसके स्थान पर पत्थर का खेल शुरू करवाया। जिससे किसी को अपनी जान न देनी पड़े और अनिष्ट भी न हो। इस पत्थर के खेल में चोट लगने पर निकलने वाले खून से भद्रकाली के खेल का चौरा में बने मंदिर में तिलक किया जाने लगा। यहां से यह प्रथा चली आ रही है।