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करगिल विजय के 25 साल: सुहाग की शहादत से बढ़ा जज्बा, शान से बच्चों को भेजा देश की सीमा पर

25 years of Kargil Vijay: दुश्मन पाकिस्तान के छक्के छुड़ा कर ‘करगिल विजय’ हासिल करने को शुक्रवार को 25 साल पूरे हो रहे है। युद्ध में शहीद हुए जवानों को नमन और बहादुरी दिखाने वालों के साहस को सलाम।

नई दिल्लीJul 26, 2024 / 07:45 am

Shaitan Prajapat

करगिल विजय के 25 साल: सुहाग की शहादत से बढ़ा जज्बा, शान से बच्चों को भेजा देश की सीमा पर

25 years of Kargil Vijay: दुश्मन पाकिस्तान के छक्के छुड़ा कर ‘करगिल विजय’ हासिल करने को शुक्रवार को 25 साल पूरे हो रहे है। युद्ध में शहीद हुए जवानों को नमन और बहादुरी दिखाने वालों के साहस को सलाम। ऑपरेशन विजय के तहत दुश्मन को मार भगाने वाला करगिल युद्ध में हमारे सैनिकों की बहादुरी और शहादत की कहानियों ने हमें गर्वित किया है। शहीदों की वीरांगनाओं के जज्बे ने उनके बच्चों सहित युवाओं को सीमाओं की रक्षा के लिए सेना में जाने की प्रेरणा दी है। करगिल युद्ध से सबक लेकर देश ने सेना में बड़े बदलाव भी किए हैं।

इसी पर डालते हैं नजर…

प्रेरणा – वीरांगनाओं ने बेटों को भेजा सेना में करगिल शहीदों की वीरांगनाओं ने अपने बच्चों को पिता की शहादत से प्रेरणा लेकर सीमा की रक्षा के लिए सेना में भेजा। राजस्थान की वीरभूमि झुंझुनूं के हवलदार शीशराम गिल दुश्मन के छह सैनिकाें को मारकर शहीद हुए थे। वीरांगना मां संतरा देवी की प्रेरणा से उनके बेटे कैलाश गिल पिता का सपना पूरा करने के लिए सेना में हवलदार हैं। राजस्थान के राइफलमैन विक्रमसिंह तंवर ने दुश्मन से मुकाबला करते हुए नौ गोलियां खाई और शहीद हुए। उस समय चार साल के नीरज आज सेना में हैं। उनकी वीरांगना मां कृष्णा कंवर ने पापा की वर्दी बेटे को दी। करगिल शहीद ओमप्रकाश के बेटे विजय सिंह भी वीरांगना मां कलिया देवी की प्रेरणा से सेना में हैं।

गर्व- आज भी लोग करते हैं याद

करगिल के जुलू टॉप पर 5 पाकिस्तानी सैनिकों के खात्मे और 130 को खदेड़ने वाले जांबाज शहीद स्क्वाड कमांडर नायक कौशल यादव की 84 साल की मां धनवंता देवी आज भी गर्वित है। भिलाई (छत्तीसगढ़) में रह रहीं शहीद कौशल की मां को गर्व इस बात का है कि बेटे की बहादुरी को आज 25 साल बाद भी लोग नहीं भूले।वे कहती हैं कि कौशल बचपन से ही खिलौना राइफल से खेलता था और बड़ा हुआ तो शहीद होकर अपना नाम अमर कर गया। बहादुरी के लिए कौशल को मरणोपरांत वीर चक्र से नवाजा गया।

जुनून- 48 को अकेले मारा कोबरा दिगंत ने

करगिल युद्ध में जीत का जुनून ऐसा था कि राजस्थान के जांबाज कोबरा हवलदार दिगेंद्र कुमार ने अकेले पाकिस्तान के 48 दुश्मनों को ठिकाने लगाया और दुश्मन के मेजर का गला काटकर टोलोलिंग चोटी पर तिरंगा फहराया। दिगेंद्र ने बताया कि उनके पास कुल 18 ग्रेनेड थे जिन्हें 11 बंकरों में डालकर पाकिस्तानियों को उड़ा दिया। इस हमले में पूरी यूनिट ने 70 से अधिक पाकिस्तानियों का खात्मा किया था। टोलोलिंग की जीत करगिल युद्ध में टर्निंग पॉइंट मानी जाती है। इस चोटी पर दुश्मन के कब्जे के कारण पूरे युद्ध क्षेत्र में भारत की सप्लाई लाइन प्रभावित हो रही थी। इस चोटी पर कब्जे से भारतीय सेना के मनोबल व उत्साह में भारी बढ़ोतरी हुई।

बदलाव- सेना में ये बदलाव

  • तेजी से निर्णय के लिए रक्षा मंत्रालय में बना सैन्य मामलात विभाग।
  • तीनों सेनाओं में तालमेल के लिए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ(सीडीएस) का पद, थियेटर कमांड की तैयारी।
  • युद्ध तैयारियों के लिए सीमावर्ती क्षेत्र में सड़क-संचार आदि बेहतर बुनियादी ढांचा।
  • ऊंचाई वाले क्षेत्र में लड़ने की तैयारी के लिए बेहतर प्रशिक्षण।
  • सर्विलेंस, हथियार, ड्रोन, मशीन और तकनीक में बड़ा सुधार।
  • रक्षा उत्पादन आत्मनिर्भरता पर जोर, शहीद सैनिकों के परिजनों का पैकेज बढ़ाया

याद – वाजपेयी ने क्लिंटन को कहा था ना

3 माह चला करगिल युद्ध (3 मई 1999 से 26 जुलाई 1999)
दुनिया का सबसे ऊंचाई (16500 फीट ऊंची टाइगरहिल) तक लड़ा गया युद्ध।
527 सैनिक शहीद, 1363 घायल।
4 परमवीर चक्र, 8 महावीर चक्र, 51 वीर चक्र दिए गए सैनिकाें को।
3000 सैनिक मरे, 1500 घायल, 750 जान बचाकर भागे दुश्मन के।
पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने भारतीय क्षेत्र खाली किए बिना युद्ध बंद करने की अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की अपील भी ठुकराई।

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