ऐसे लग रही दोहरी चपत टोलनाके से अजमेर एवं जयपुर जाने वाली बसों की संख्या के हिसाब से एकमुश्त राशि करीब एक लाख रुपए या इससे ज्यादा टोल के लिए जमा करा दी जाती है। इसके बाद टोल की ओर से रोडवेज को टोलकार्ड दे दिया जाता है। अजमेर या जयपुर जाने के दौरान टोलनाके पर कार्ड को दिखा दिया जाता है। इसके बाद टोलनाके कर्मियों की ओर से कार्ड को स्वैप कर दिया जाता है। स्वैप करते ही जमा राशि में से मौजूदा राशि कट जाती है। अब टोलकार्ड नहीं होने की स्थिति में परिचालक की ओर से मसलन अजमेर जाने वाले रूट पर केवल जाने के ९० रुपए जमा कराने पड़ते हैं, और आने के दौरान भी ९० रुपए ही देने पड़ते हैं। इस तरह से विभाग को दोहरी आर्थिक चपत लगने लगी है।
…फिर भी नहीं बनवाया पास प्रति बस के टोलनाके से रोजाना जाने की स्थिति में पास भी बनवाया जा सकता था। पास बनने के बाद फिर यह राशि रोजाना नाके पर दिए जाने वाली राशि की अपेक्षा आधी हो जाती है। इससे विभाग को इसका फायदा मिल जाता, लेकिन जिम्मेदारों की ओर से कार्ड नहीं होने की स्थिति में पास भी बनवाए जाने की जहमत नहीं उठाई गई।
अधिकारी कहिन… इस संबंध में जब नागौर आगार के मुख्य प्रबंधक मनोहरसिंह राजपुरोहित से बातचीत की गई तो उनका कहना था कि करीब २०-२५ बसों के टोलकार्ड नहीं हैं। इनके कार्ड जल्द ही बनवा लिए जाएंगे। जब यह कहा गया कि तीन साल से यह स्थिति बनी हुई तो उनका कहना था कि तीन साल नहीं, महज छह माह से है। तो फिर छह माह में ही कार्ड अब तक क्यों नहीं बनवाया जा सका, अब तक विभाग को इससे हुई राजस्व हानि को जिम्मेदार कौन है, के सवाल पर वह स्पष्ट रूप से कुछ भी कहने की जगह बस इतना ही बताया कि एक मई से सभी कार्ड बन जाएंगे।