नागौर जिले के प्राचीन मंदिरों एवं धार्मिक स्थलों को जोडकऱ यदि राज्य सरकार का पर्यटन विभाग धार्मिक पर्यटन सर्किट बनाए तो तस्वीर बदल सकती है। हालांकि सरकार कई बार अजमेर व जयपुर के धार्मिक स्थलों को नागौर के धार्मिक स्थलों से जोडकऱ पर्यटन सर्किट विकसित करने की बात की और बजट में भी इसकी घोषणा की गई, लेकिन इस दिशा में काम नहीं हो पाया। करीब चार साल पहले मार्च 2020 में नागौर के पूर्व सांसद हनुमान बेनीवाल ने लोकसभा में भी इस मुद्दे को उठाते हुए राजस्थान व नागौर में धार्मिक पर्यटन को विकसित करने की मांग की थी।
हमारे पास हजारों साल पुराना इतिहास
राजस्थान भारत का एक ऐसा राज्य है जो पर्यटन के लिए सबसे अच्छा राज्य माना जाता है, चूंकि आज देश के कई राज्यों में कृत्रिम पर्यटन विकसित किया गया है, जबकि राजस्थान राज्य के हर जिले में कई दर्शनीय स्थल देखने को मिलते हैं, जिनका इतिहास हजारों साल पुराना है। नागौर भी उनमें से एक है। विशेष रूप से कई पौराणिक मंदिर हैं। इसमें जसनगर का शिव मंदिर है। कहते हैं जसनगर शिल्प, स्थापत्य-सौंदर्य और पुरातात्विक सम्पदा के साथ-साथ हिन्दू, जैन और अन्य धर्मों के मिलन का केंद्र रहा है। नागौर व पाली जिले की सीमा तथा लूनी नदी के किनारे पर बसे जसनगर के मध्य में स्थित प्राचीन शिव मंदिर में स्थापत्य कला के शिल्प के अद्भुत-अलौकिक मूतियों से रामायण के प्रसंग आमजन के लिए आकर्षण केन्द्र बने हुए हैं। इसी प्रकार जिले के गोठ मांगलोद में माता दधिमती का प्राचीन मंदिर है। यहां नवरात्र में अष्टमी के दिन मेला भरता है। मेले में देशभर से लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शन करने के लिए उमड़ती है। यह मंदिर भी सैकड़ों वर्ष पुराना है।
नागौर की संत बेटियों का इतिहास निराला
प्रभु भक्ति में लीन होकर देश-प्रदेश ही नहीं विश्व भर में प्रसिद्धि पाने वाली नागौर की चार संत बेटियों के मंदिरों एवं उनके जन्म स्थलों को पर्यटन से जोडऩे की मांग पहले भी उठ चुकी है। इस सम्बन्ध में नागौर के पद्मश्री हिम्मताराम भाम्भू ने पूर्व में प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर पर्यटन से जोडऩे की मांग की थी। नागौर के मेड़ता की मीरां बाई, मकराना के कालवा गांव की कर्मा बाई, डेगाना के हरनावा की राना बाई और नागौर के मांझवास की फूलां बाई ने अपने समय में प्रभु भक्ति के माध्यम से कई चमत्कार दिखाए, जिनकी आज भी पूजा होती है, और लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र है, इसको देखते हुए चारों के जन्मस्थान एवं मंदिरों को पर्यटन से जोड़ा जाए तो न पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि आने वाली पीढिय़ों को भी हमारे इतिहास की जानकारी मिलेगी।