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नागौर

औसतन हर माह एक बाल श्रमिक ही मुक्त करा पा रही सरकारी मशीनरी

करीब पांच साल में सौ बाल श्रमिक भी नहीं हो पाए मुक्त, पुनर्वास की सारी बातें कागजी

नागौरAug 25, 2024 / 08:11 pm

Sandeep Pandey

लापरवाही या मिलीभगत

सवा दो साल में नागौर (कुचामन-डीडवाना) में सिर्फ तीस बाल श्रमिक ही मुक्त कराए गए

नागौर. बालश्रम रोकने पर सरकारी श्रम होता नहीं दिख रहा। ना बाल श्रमिकों को मुक्ति मिल रही है ना ही उन्हें शिक्षा से जोड़कर अच्छा नागरिक बनाया जा रहा है। और तो और उनके परिवारों को आर्थिक संबल प्रदान करने वाली सरकारी कवायद भी ठण्डे बस्ते में चली गई। अब दो-चार महीने में इक्का-दुक्का बाल श्रमिक मुक्त कराए जा रहे हैं। श्रम विभाग हो या संबंधित पुलिस शाखा, इस पर आंख मूंदे बैठे हैं।
सूत्रों के अनुसार सालभर में पुलिस एक बार बाल श्रमिकों को मुक्त कराने के लिए एक अभियान भी चलाती है। कारखाने/फैक्ट्री के साथ होटल समेत अन्य जगह बाल मजदूरी को पूरी तरह बंद करने का शोर भी मचता है। कुछ दिन बाद फिर वही हाल। जगह-जगह काम करते दिखते बाल मजदूर सिस्टम की पोल खोलते हैं। कागजी खानापूर्ति का यह दिखावा पूरी तरह बालश्रम को खत्म करने के नाम पर ढोंग लगता है। हकीकत तो यह है कि पिछले पांच साल में नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले में सौ बाल श्रमिक भी मुक्त नहीं कराए गए। पिछले सवा दो साल में तो इनकी संख्या महज तीस तक ही पहुंच पाई। इनमें किसी को शिक्षा से जोड़ा हो, यह भी नहीं लग रहा।
सूत्र बताते हैं कि सस्ती मजदूरी पर बच्चों को रखने का चलन यूं तो काफी पुराना है। फिर भी बढ़ती जागरूकता के चलते इस पर कुछ नियंत्रण तो अपने आप ही हो गया। बाहरी राज्यों के ही नहीं स्थानीय स्तर पर गरीब परिवार से जुड़े बच्चे सस्ते मेहनताने पर अपने परिवार को सहयोग कर रहे हैं। यह सहयोग उनका भविष्य खराब कर रहा है। इसका मुख्य कारण यह भी कि उनके परिवार को सरकारी बंदिश अथवा लोक कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी ही नहीं है। ऐसे में ये बालश्रम को अपराध नहीं अपना कर्तव्य समझते हैं। नावां में नमक उत्पादन में सैकड़ों बाल श्रमिक काम कर रहे हैं तो नागौर शहर समेत डीडवाना-मकराना आदि में भी बाल मजदूरी बड़े पैमाने पर की जा रही है।
क्या हुआ बच्चों को पढ़ाने के टॉस्क का

करीब तीन साल पहले सरकारी स्तर पर आदेश-निर्देश दिए गए थे जिनमें कहा गया था कि कहीं भी बाल श्रमिक मिले तो स्थानीय होने पर उसे तुरंत सरकारी स्कूल में प्रवेश दिलाया जाए। बाल श्रमिकों के नामांकन सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी संबंधित कार्मिकों को दी गई थी। यही नहीं ऐसा बालक यदि तीस दिन तक स्कूल से लगातार अनुपस्थित रहेगा तो उसकी सूचना बाल श्रम नोडल अधिकारी को देनी थी। इसके साथ बाल श्रमिकों का मेडिकल कर उसकी रिपोर्ट व आयु प्रमाण पत्र बाल कल्याण समिति, पुलिस व श्रम विभाग को भेजना तय हुआ था। मजे की बात यह कि एक-दो बच्चे भी स्कूल से नहीं जोड़े गए।
बड़ी-बड़ी बातें पर नतीजा सिफर

तय तो यह भी हुआ था कि बाल श्रमिकों के परिवार के व्यस्क सदस्य को मनरेगा सहित विकास कार्य में प्राथमिकता से काम दिलाया जाएगा। इसकी जिम्मेदारी कलक्टरों को सौंपी गई थी। करीब तीन साल पहले तत्कालीन मुख्य सचिव निरंजन आर्य ने हर थाने के बाल कल्याण अधिकारी को अपने इलाके के बाल श्रम बाहुल्य संस्थान जैसे होटल, ढाबे, कारखाने सहित अन्य व्यावसायिक ठिकानों पर बराबर नजर रख कार्रवाई करने को कहा था। यही नहीं पुलिस थाना स्तर पर होने वाली शांति समिति की बैठक के एजेंडे में बाल श्रम नियोजन का मुद्दा रखना, साथ ही ये रेलवे सुरक्षा बल से समन्वय कर बाल श्रम के लिए बालकों की तस्करी करने वाले गिरोह एवं दलालों पर प्रभावी कार्रवाई के लिए भी दिशा-निर्देश दिए गए थे पर तीन साल में हुआ कुछ नहीं। तय तो यह भी हुआ था कि श्रम विभाग टास्क फोर्स के साथ बाल मजदूरी रोकने के लिए नियमित बैठक करेगा। एसडीएम इसकी मॉनिटरिंग करेंगे। और तो और मानव तस्करी विरोधी यूनिट इस पर काम करेगी।
इनका कहना…

पुलिस/श्रम विभाग किसी बाल श्रमिक को पकड़ता है तो बाल कल्याण समिति (सीडब्लूसी) के समक्ष पेश करता है। बयान के बाद उसके परिजनों को सुपुर्द कर देते हैं। शिक्षा से जोडऩे, उनके परिवार को आर्थिक संबल प्रदान करने संबंधी कई योजनाएं भी समय-समय पर चलती रहती हैं। मिलजुल कर ही इसे पूरी तरह खत्म किया जा सकेगा।
-मनोज सोनी, अध्यक्ष बाल कल्याण समिति नागौर

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