सूत्रों के अनुसार मोबाइल से लेन-देन आम हो गया है। चलन भी ऐसा कि लोगों ने जेब में नकदी रखना लगभग बंद सा कर दिया है। सब्जी/फल वाला हो या चाय/पान वाला, अधिकांश फोन के जरिए पेमेंट पाकर खुश हैं। ऐसे में जब जेब में पैसे नहीं हों तो रिक्शे अथवा ऑटो वाले का नकदी मांगना मुश्किल में डाल देता है। नागौर शहर में अभी एक चौथाई ऑटो चालक ही ऑनलाइन पेमेंट ले रहे हैं , जबकि तीन चौथाई नकदी। इस संबंध में ऑटो चालक यूनियन के अध्यक्ष रूपसिंह पंवार का कहना है कि नागौर में अधिकांश ग्रामीण परिवेश के लोग हैं। ये लोग नकद देने-लेने में ही विश्वास करते हैं।
सिस्टम की समझ… यहां के कुछ दुकानदार ही नहीं अन्य रोजगार वाले भी मोबाइल तो चला लेते हैं पर उसके जरिए पेमेंट के लेन-देन से बचते हैं। संजय कॉलोनी में डिपार्टमेंटल स्टोर चलाने वाले सुरेश बेनीवाल का कहना है कि हर किसी को मोबाइल ऑपरेट करना नहीं आता। किसी झमेले में नहीं फंस जाएं, कई लोग इसलिए भी इससे बचते हैं। यह भी सही है कि कैशलेस पेमेंट के प्रति लोगों की प्राथमिकता बढ़ रही है।
इतने सारे संशय … असल में आए दिन बढ़ रहे फ्रॉड की वजह से कई दुकानदार इससे डरते हैं। बढ़ती साइबर ठगी के कारण भी वो इस सिस्टम को चुनने से घबराते हैं। यही नहीं कुछ के मन में भ्रांति है कि ऑनलाइन लेन-देन पर कहीं कोई टैक्स ना लग जाए या फिर साइबर ठगी के जरिए आए पेमेंट से खाता फ्रीज ना कर दिया जाए। इन तमाम तरह की आशंकाओं के चलते भी कुछ दुकानदार व कारोबारी कैशलेस पेमेंट सिस्टम से दूरी बनाए हुए हैं। इस संबंध में कर सलाहकार मुनेंद्र सुराणा का कहना है कि यह भ्रांति दूर करनी होगी। कैशलेस लेन-देन में किसी तरह का कोई अलग टैक्स/भार नहीं पड़ता। कोराबारी लेन-देन पर जीएसटी नियमानुसार देय है। यूपीआई से रकम के लेन-देन का विस्तृत ब्योरा जरूर देना पड़ता है। तरह-तरह के अनावश्यक डर से कई लोग डिजिटल बैंकिंग से बचते हैं।