जोधपुर राजघराने से जुड़े अमरसिंह राठौड़ को 1638 ईस्वी में मुगल बादशाह शाहजहा ने नागौर की मनसब और राव की पदवी दी थी। अमरसिंह राठौड़ ने जोधपुर से निकल कर शाहजहां के पक्ष में कई युद्ध लड़े और उनमें बहादुरी दिखाई थी। इससे खुश होकर मुगल बादशाह ने अमरसिंह राठौड़ को यह बख्शीश दी थी।
मुगल दरबार आगरा में सलावत खां (मीर बख्शी) ने कुछ कड़वी बात कह दी थी, जो अमरसिंह को नागवार गुजरी। उन्होंने भरे दबार में सलावत खां का कत्ल कर दिया। यह वाक्या 25 जुलाई,1644 ईस्वी में हुआ था। इसके बाद वे बहादुरी से लड़ते हुए दरबार से निकल गए थे, लेकिन बाद में साजिश के तहत उन्हें वापस किले तक लाया गया और हत्या कर दी गई। अमरसिंह के साथी बड़ी बहादुरी से उनका पार्थिव देह नागौर लेकर आने में कामयाब हुए और अंतिम संस्कार किया। उनकी याद में स्मारक बनाया गया। अपने जीवन काल में वे अंतिम समय तक स्वाभिमान से ही रहे।
नागौर में झड़ा तालाब के किनारे छतरियां बनी हुई है। सोलह खंभों की छतरी वीर अमरसिंह राठौड़ की है। छतरी में पीले, लाल व बलुआ रंग के पत्थर लगे हुए हैं। स्तंभ, छज्जे व टोड़े भुरे बलुआ पत्थर से, गुम्बद व डाटे लाल बलुआ पत्थरों से निर्मित है। गुम्बद में फूल-पत्तियों व पशु-पक्षियों की सुंदर नक्काशी बनी हुई है। वास्तु शिल्प की दृष्टि से यह स्मारक सत्रहवीं शताब्दी की राजपूत स्थापत्य कला का नायाब नमूना है। इसके आसपास अन्य आठ छतरियां भी हैं, जो रानियों और परिवार के अन्य लोगों की याद में बनी हुई है।