मुस्लिम सभासदों ने वंदे मातरम् गाने से किया इनकार
मुजफ्फरनगर जनपद की बुढाना नगर पंचायत में शनिवार को पहली बोर्ड बैठक का आयोजन किया गया । इस बैठक में पंचायत अध्यक्ष बाला त्यागी, बुढाना विधायक उमेश मलिक सहित सभी सभासदों ने भाग लिया। बोर्ड बैठक शुरू होने से पहले वंदे मातरम् गाने के लिए सभी लोगों को खड़ा होने के लिए कहा गया। इस दौरान मुस्लिम सभासद खड़े नहीं हुए, लेकिन विधायक व नगर पंचायत अधिशासी अभियंता ओमगिरी के हस्तक्षेप के बाद सभासद खड़े तो हुए, लेकिन राष्ट्र गीत नहीं गाया । बैठक खत्म होने के बाद जब सभासद राशिद अजीम से राष्ट्र गीत न गाने का कारण पूछा गया तो उन्होंने बताया कि हमारा मजहब राष्ट्र गीत गाने की इजाजत नहीं देता है ।
प्रशासन ने मामले को किया रफा-दफा
वहीं, बुढाना नगर पंचायत के अधिशासी अभियंता सभासदों को केवल खड़े होने व राष्ट्रीय गीत न गाने को कहते हुए सुनाई पड़ रहे हैं। नगर पंचायत अधिशासी अधिकारी ओमगिरि वंदे मातरम् पर पहली बोर्ड मीटिंग में हुए विवाद के बाद मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए बातों को गोलमोल करते हुए मामले को नजरआंदाज करते नजर आए। इस पूरे मामले में मुज़फ्फरनगर में चल रही विश्व हिन्दू परिषद की प्रान्तीय कार्य समिति की बैठक में ये मामला काफी गर्माया। 22 जिलों से आए विहिप नेताओं ने इसकी कड़ी निंदा की। वहीं, मुख्यअतिथि बलराज डूंगर व देवेश उपाध्याय ने इस मामले में कड़ी चेतवानी दी।
वीएचपी नेता बोलेः ऐसे लोगों को देश में रहने का अधिकार नहीं
विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय उपाध्यक्ष देवेश उपाध्याय ने इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वंदे मातरम् न गाना अलग विषय है और विरोध करना अलग विषय है। जो लोग इस देश के अंदर वंदे मातरम् गाते भी नहीं है और उसका विरोध भी करते हैं तो उन लोगों को देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है। इस देश में अगर किसी को रहना है तो राष्ट्रीय गीत और राष्ट्रीय गान तो गाना ही होगा, जिसकी राष्ट्र के प्रति श्रद्धा नहीं है। उसको इस देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है। वह अपना स्थान कहीं और ढूंढें।
बजरंग दल के प्रदेश संयोजक ने भी उगला जहर
वहीं, बजरंग दल के प्रदेश संयोजक बलराज डूंगर ने इस मामले में कहा कि कुछ जेहादी लोग देश के अंदर वंदे मातरम् का विरोध करते हैं। कुछ जिहादी लोग मदरसों के माध्यम से भारत माता का विरोध करते हैं। देश के अंदर मुगलों की सरकारें नहीं है। अगर यह जेहादी लोग वंदे मातरमे और राष्ट्र गीत का विरोध करते हैं तो ऐसे जिहादी लोगों को भरे चौराहे पर फांसी पर लटका दिया जाए और ऐसे जिहादियों को देश के अंदर नहीं रहने देना चाहिए।
वंदे मातरम् नहीं गाने वाले सभासद ने यह दिया तर्क
वंदे मातरम् नहीं गाने वाले सभासद राशिद अजीम ने बताया कि नगर पंचायत बुढाना में हमारे बोर्ड की पहली मीटिंग थी। मुख्य अतिथि के रूप में विधायक उमेश मलिक आए थे और हमारे नगर पंचायत ईओ ने हमसे प्रस्ताव रखा कि वंदे मातरम् गाना होगा। आप लोग खड़े हो जाइए। हमारे जितने भी मुस्लिम सभासद हैं, उन सब ने माफी चाही कि हमारा मजहब हमें इसकी इजाजत नहीं देता तो हम इस में असमर्थ हैं।
मेरठ में भी गरमाया था वंदे मातरम् का मामला
मेरठ में बसपा नेता सुनिता वर्मा के मेयर चुने जाने के बाद वंदे मातरम् को लेकर काफी सियासी बवाल मचा था। दरअसल, बसपा मेयर सुनिता वर्मा के पति योगेश वर्मा ने कह दिया था कि मेरठ नगर निगम के सदन में अब वंदे मातरम् का गायन नहीं किया जाएगा। इसके बाद भजपा नेताओं ने तीखा विरोध किया था। इन सबके बावजूद मेयर और पार्षदों के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान भी मेयर ने राष्ट्र गीत वंदे मातरम् गाने से इनकार कर दिया था। यहां तक कि वंदे मातरम् गायन के समय मेयर सुनिता वर्मा खड़ी भी नहीं हुई थी। इसको लेकर भाजपा ने खूब हल्ला मचाया था। मायावती की सफाई के बाद मामला शांत हो पाया था। वहीं, इस मामले में मेयर के खिलाफ राष्ट्र गीत के अपमान को लेकर एक केस भी दर्ज कराया जा चुका था।
इसलिए मुस्लिम करते हैं वंदे मातरम् का विरोध
दरअसल, राष्ट्र गीत वंदे मातरम् में देश को मां का रूप मानकर उसकी स्तुति की गई है। मुसलमानों का तर्क है कि इस्लाम एकेश्वरवादी धर्म है। इस्लाम में केवल एक ईश्वर के अलावा किसी और चीज की इबादत या आरती की कोई गुजाइश नहीं है। लिहाजा, मुसलमान इस गीत को नहीं गा सकते हैं। गौरतलब है कि आजादी से पहले भी वंदे मातरम् को सर्वस्वीकार्य गीत का दर्जा नहीं मिला था। इसे लेकर विरोध की आवाज आजादी से पहले भी उठी थी। तब कांग्रेस ने वंदे-मातरम पर विभाजन को रोकने के लिए माहात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और सुभाष चंद्र बोस को लेकर 1937 में एक समिति बनाई थी। इस समिति ने इस गीत पर आपत्तियां आमंत्रित की थीं। उस समय सबसे बड़ी आपत्ति यह आई थी कि यह गीत एक धर्म विशेष के हिसाब से भारतीय राष्ट्रवाद को परिभाषित करता है। यह सवाल केवल मुस्लिम संगठनों ने ही नहीं, बल्कि सिख, जैन, ईसाई और बौद्ध संगठनों ने भी उठाया था। तब इसका हल ये निकाला गया कि इस गीत के शुरू के केवल दो अंतरे गाए जाएंगे, जिनमें कोई धार्मिक पहलू नहीं है। लेकिन, इस फैसले से मुसलमान आज तक संतुष्ट नहीं हुए हैं। इसी कारण से जब भी बलपूर्वक इस गीत को गाने के लिए मजबूर करने की बात सामने आती है तो इसका विरोध किया जाता है।