मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर साल 1967 से मुस्लिम प्रत्याशियों की जीत का सिलसिला शुरू हुआ था। मुजफ्फरनगर में कभी एक के बाद एक मुस्लिम नेता अलग-अलग पार्टियों से सांसद बने। साल 1967 में सीपीआई (Communist Party of India) के टिकट पर लताफत अली खां चुनाव जीते थे। उन्होंने कांग्रेस के ब्रह्म स्वरूप को हराया था। इसके बाद साल 1977 में लोकदल के सईद मुर्तजा ने कांग्रेस के वरुण सिंह को हराकर जीत दर्ज की। साल 1980 में जनता दल (एस) के गय्यूर अली खां ने कांग्रेस के नजर मोहम्मद को हराया। 1989 में कश्मीर से आए मुफ्ती मोहम्मद सईद ने जनता दल के टिकट पर कांग्रेस के आनंद प्रकाश त्यागी को हराया। सईद केंद्र की वीपी सिंह सरकार में गृहमंत्री बने।
यूपी की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट मुस्लिम राजनीति के लिए इतनी मुफीद साबित रही कि साल 1999 से 2014 तक लगातार 15 साल तक यहां मुस्लिम सांसद ही रहे। साल 1999 में कांग्रेस के सईदुज्जमां ने भाजपा के सोहनवीर सिंह को हराया। साल 2004 में सपा के मुनव्वर हसन ने भाजपा के ठाकुर अमरपाल सिंह को हराया। साल 2009 में बसपा के कादिर राना ने रालोद की अनुराधा चौधरी को हराया। यहां पहले लोकसभा की दो सीटें मुजफ्फरनगर और कैराना थी। बाद में कैराना लोकसभा सीट शामली जिले में चली गई।
यूपी के मुजफ्फरनगर जिले में साल 2013 में सांप्रदायिक दंगा हुआ। कहा जाता है कि इसके बाद से यहां की मुस्लिम राजनीति में बड़ा बदलाव आया। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कादिर राना मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर बसपा के टिकट पर चुनाव तो लड़े, लेकिन वह जीत नहीं सके। इसके बाद साल 2017 विधानसभा चुनाव में ऐसा बदलाव आया कि यहां एक भी मुस्लिम प्रत्याशी विधानसभा चुनाव नहीं जीत सका।