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मुजफ्फरनगर

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट का गणित: 18 में से 6 लाख मुस्लिम आबादी, फिर भी किसी ने नहीं भरा पर्चा

Lok Sabha Elections 2024 UP: उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर पहले चरण में मतदान होना है। यहां नामांकन प्रक्रिया भी संपन्न हो चुकी है। हैरत की बात ये है कि 18 लाख की आबादी में से 6 लाख मुस्लिम वोटर होने के बाद यहां किसी राजनीतिक दल ने मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा। इसके अलावा किसी मुस्लिम प्रत्याशी ने निर्दलीय नामांकन भी नहीं किया है। आखिर इसका कारण क्या है? आइए जानते हैं।

मुजफ्फरनगरApr 01, 2024 / 12:02 pm

Vishnu Bajpai

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मुजफ्फरनगर में भाजपा से संजीव बालियान, इंडिया गठबंधन से हरेंद्र मलिक और बसपा से दारासिंह प्रजापति चुनाव मैदान में हैं।

Muzaffarnagar Lok Sabha Seat: यूपी की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर साल 1967 से अलग-अलग समय में मुस्लिम प्रत्याशी जीतते रहे। इसके पीछे यहां मुस्लिम वोटर की संख्या है। दरअसल, मुजफ्फरनगर की कुल आबादी 18 लाख है। इसमें से 6 लाख मुस्लिम हैं। यही कारण है कि साल 1967 से यहां मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव जीतते रहे हैं। हालांकि साल 2013 में हुए दंगे के बाद यहां चुनावी गणित बदला है। लोकसभा चुनाव 2024 के लिए मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर सपा, बसपा और भाजपा सहित 11 प्रत्याशी मैदान में हैं। इनमें एक भी प्रत्याशी मुस्लिम नहीं है। ये हालात तब हैं। जब 1967 के बाद से मुजफ्फरनगर सीट पर कई मुस्लिम नेता सांसद चुने जा चुके हैं। इनमें लताफत अली खां, मुफ्ती मोहम्मद सईद और कादिर राना सरीखे दिग्गज मुस्लिम नेता शामिल हैं।

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर साल 1967 से मुस्लिम प्रत्याशियों की जीत का सिलसिला शुरू हुआ था। मुजफ्फरनगर में कभी एक के बाद एक मुस्लिम नेता अलग-अलग पार्टियों से सांसद बने। साल 1967 में सीपीआई (Communist Party of India) के टिकट पर लताफत अली खां चुनाव जीते थे। उन्होंने कांग्रेस के ब्रह्म स्वरूप को हराया था। इसके बाद साल 1977 में लोकदल के सईद मुर्तजा ने कांग्रेस के वरुण सिंह को हराकर जीत दर्ज की। साल 1980 में जनता दल (एस) के गय्यूर अली खां ने कांग्रेस के नजर मोहम्मद को हराया। 1989 में कश्मीर से आए मुफ्ती मोहम्मद सईद ने जनता दल के टिकट पर कांग्रेस के आनंद प्रकाश त्यागी को हराया। सईद केंद्र की वीपी सिंह सरकार में गृहमंत्री बने।

यूपी की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट मुस्लिम राजनीति के लिए इतनी मुफीद साबित रही कि साल 1999 से 2014 तक लगातार 15 साल तक यहां मुस्लिम सांसद ही रहे। साल 1999 में कांग्रेस के सईदुज्जमां ने भाजपा के सोहनवीर सिंह को हराया। साल 2004 में सपा के मुनव्वर हसन ने भाजपा के ठाकुर अमरपाल सिंह को हराया। साल 2009 में बसपा के कादिर राना ने रालोद की अनुराधा चौधरी को हराया। यहां पहले लोकसभा की दो सीटें मुजफ्फरनगर और कैराना थी। बाद में कैराना लोकसभा सीट शामली जिले में चली गई।
इन दोनों सीटों पर तीन बार दो-दो मुस्लिम नेता चुनाव जीते। पहली बार 1967 में मुजफ्फरनगर से लताफत अली खां और कैराना से गय्यूर अली खां चुनाव जीते। दोनों मामा-भांजे थे। साल 1999 में मुजफ्फरनगर से सईदुज्जमा और कैराना से अमीर आलम खां चुनाव जीते। 2009 में मुजफ्फरनगर से कादिर राना और कैराना से तबस्सुम हसन चुनाव जीतीं।

यूपी के मुजफ्फरनगर जिले में साल 2013 में सांप्रदायिक दंगा हुआ। कहा जाता है कि इसके बाद से यहां की मुस्लिम राजनीति में बड़ा बदलाव आया। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कादिर राना मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर बसपा के टिकट पर चुनाव तो लड़े, लेकिन वह जीत नहीं सके। इसके बाद साल 2017 विधानसभा चुनाव में ऐसा बदलाव आया कि यहां एक भी मुस्लिम प्रत्याशी विधानसभा चुनाव नहीं जीत सका।
इसके बाद साल 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा-रालोद गठबंधन ने जिले की छह में से एक भी सीट पर मुस्लिम को टिकट ही नहीं दिया। हालांकि इस चुनाव में छह में दो सीटें भाजपा ने जीतीं। जबकि चार सीटों पर सपा-रालोद गठबंधन का कब्जा रहा। फिलहाल यहां एनडीए से संजीव कुमार बालियान, इंडिया गठबंधन से हरेंद्र मलिक और बसपा से दारासिंह प्रजापति चुनाव मैदान में हैं।

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