कम उम्र में संभालनी पड़ी थी खाप की जिम्मेदारी छह अक्टूबर 1935 को सिसौसी गांव में महेंद्र सिंह का जन्म हुआ था। पिता चौहल सिंह टिकैत बालियान खाप के मुखिया थे। माता मुख्त्यारी देवी घर का काम करती थी। महेंद्र टिकैत जब बचपन की उम्र में थे तभी उसके पिता का निधन हो गया। जिसके बाद उन्हें बालियान खाप की जिम्मेदारी संभलनी पड़ी। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत को किसानों के लिए लड़े गए संघर्षों के लिए ही उन्हें बाबा टिकैत और महात्मा टिकैत जैसे नामों से आज भी पुकारा जाता है। चौधरी महेंद्र टिकैत ने साल 1950 से 2010 तक महापंचायतों में सामाजिक कुरीतियों जैसे नशाखोरी, भ्रूण हत्या, मृत्यु भोज और दहेज प्रथा पर रोक के खिलाफ अभियान चलाया था।
सादगी और ठेठ देहाती अंदाज से जीत लेते थे सबका दिल चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत भी राष्ट्रपति महात्मा गांधी की तरह ही बेहद सादगी से जीते थे। उनका ठेठ देहाती अंदाज लोगों का दिल जीत लेता था। कंधे पर चादर, हवाई चप्पल और सिर पर टोपी चौधरी टिकैत की पहचान थी। बाबा टिकैत जीवनभर हुक्का पीते रहे। एक बार किसानों के आंदोलन में शामिल होने के लिए हवाई जहाज से बाबा टिकैत कर्नाटक जा रहे थे और साथ में अपना हुक्का भी ले जा रहे थे। हवाई जहाज में अधिकारियों ने हुक्का ले जाने से रोक दिया। जिस पर बाबा टिकैत ने अधिकारियों से अपने अंदाज में कहा कि हुक्का ना जा तो मैं भी ना जाऊं। हालांकि बाद में अधिकारियों ने हुक्का साथ ले जाने की अनुमति दे दी।
बाबा टिकैत की बेबाकी और साफगोई के सब कायल बाबा टिकैत संजीदा और सरल स्वभाव के धनी व्यक्ति थे। शायद यही वजह है कि उनकी बेबाकी और साफगोई के सब कायल थे। बाबा टिकैत की एक हुंकार से महापंचायतों और धरना-प्रदर्शनों में लाखों किसान पहुंच जाचे थे। कई बार बाबा टिकैत की आंदोलनों से देश-प्रदेश की सरकारें झुकीं और किसानों की दिक्कतों का हल निकाला गया। आज भी महात्मा टिकैत की स्मृतियां अनमोल धरोहर है। 14 मई 2011 को बाबा टिकैत दुनिया को अलविदा कह गए।