जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण ने आरोपी की जमानत याचिका को खारिज किया। कोर्ट ने कहा कि आमतौर पर दुष्कर्म करने वाले वे लोग होते हैं जो बच्चे को अच्छी तरह से जानते हैं और संभवतः उसी घर में रहते हैं। आरोपी रिश्तेदार के खिलाफ 2016 और 2017 के बीच दो नाबालिग बहनों से बलात्कार, छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न के आरोप में 2021 में मामला दर्ज किया गया था।
आरोपी रिश्तेदार ने एक विशेष अदालत द्वारा जमानत नहीं दिए जाने के बाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। स्पेशल कोर्ट ने 2022 में उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। 9 और 13 साल की पीड़ित लड़कियों की मां की शिकायत में कहा गया है कि आरोपी उसकी मौसी का पति है। आरोपी ने कथित तौर पर बच्चियों को नशीला पदार्थ भी खिलाया था और उन्हें अश्लील वीडियो दिखाकर घुनौना काम किया। आरोपी ने उनके नग्न वीडियो भी रिकॉर्ड किए थे।
पिछले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए जस्टिस चव्हाण ने अपने फैसले में कहा कि यौन इरादे से पीड़ित के निजी अंग को प्राइवेट पार्ट से छूना भी पॉक्सो एक्ट के तहत प्रवेशक (पेनेट्रेटिव) यौन उत्पीड़न करने का अपराध है। पेनेट्रेटिव यौन हमले के मामले में यह जरूरी नहीं है कि पीड़िता के निजी अंगों में कोई चोट हो। पीड़ित के निजी अंग पर प्राइवेट पार्ट का स्पर्श मात्र अपराध माना जाता है।
आरोपी के वकील का दावा है कि संपत्ति विवाद को लेकर यह झूठा मामला दर्ज कराया गया है। लड़कियों के साथ पेनेट्रेटिव यौन उत्पीड़न हुआ है, इसका कोई मेडिकल साक्ष्य नहीं है। आरोपी 2 सितंबर 2021 से जेल में बंद है।