भरत को दल-बल के साथ चित्रकूट में आता देखकर लक्ष्मण को इनकी नीयत पर शंका होती है। उस समय श्री राम ने उनके शंका का समाधान करते हुए कहा लक्ष्मण भरत पर सन्देह करना व्यर्थ है। भरत के समान शीलवान भाई इस संसार में मिलना दुर्लभ है। अयोध्या के राज्य की तो बात ही क्या ब्रह्मा, विष्णु और महेश का भी पद प्राप्त करके श्री भरत को मद नहीं हो सकता।
चित्रकूट में भगवान श्री राम से मिलकर पहले भरत उनसे अयोध्या लौटने का आग्रह करते हैं, किन्तु जब देखते हैं कि उनकी रुचि कुछ और है तो भगवान की चरण-पादुका लेकर अयोध्या लौट आते हैं। नन्दिग्राम में तपस्वी जीवन बिताते हुए ये श्रीराम के आगमन की चौदह वर्ष तक प्रतीक्षा करते हैं। कथा के आयोजन में गौरीशंकर पटवा, पुरोहित रमेशचंद्र शुक्ला, हरिबंश राजभर, दिनेश पटवा, महादेव सुपारी, गायत्री पटवा, रामकुमार पटवा, बबलू दुबे, डॉ. महेंद्र शुक्ला, सुशील पांडे आदि सक्रिय रहे।